जीवन दर्पण नारी (बेखबर फासलें)
कुछ ही दिन बीते थे, सिमी को अपने मायके आये, लेकिन उसे इस बार का मायका आना,
Read Moreकुछ ही दिन बीते थे, सिमी को अपने मायके आये, लेकिन उसे इस बार का मायका आना,
Read Moreमेरी रूह तेरे रूह की पैरहन में लिपटे खामोश फ़िज़ा में कुछ इस तरह सिमटे दिल की ख़िलाफ़त एक-एक लम्हें
Read Moreएक अजीब सा अहसास लिए जीती हूँ, ज़िंदगी में दिल और दिमाग की भूमिका में कुछ उलझे-सुलझे रिश्तो के धागे
Read Moreमोहब्बत क्यों बुला रही शाम ढल आज़मा रही रात का चाँद हमनवां बादलो में छुपा रही ख्वाहिशों से कहे शमां
Read Moreदो टूक की खामोशी सिमटी साज़िशों में उलझ गये… कुछ तो था……. तेरे-मेरे दरमियां… वक़्त के मंज़र पल के अहसास
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