कोई किसी का नहीं यहां
कोई किसी का नहीं यहां, सब किरदार निभाने आए हैं देख कोई बुझा-बुझा ,कोई रहता है जलता इन्ही जलते-बुझते रिश्तों
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Read Moreशरद में वो ठिठुराने वाली शरद ऋतु में कपकपाते हाथों से, थरथराते होठों से आज भी वो बुढ़िया एक
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