जीत
जीत की ललकार है खून मार रहा उबाल उठा लो तुम अपनी ढाल युद्ध का उद्घोष हो
Read Moreढलने लगा दिन ,जगने लगी रात आ जा रै मोरे बालम आ जा रै मोरे बालम कर ले तूँ दिल
Read Moreकोई किसी का नहीं यहां, सब किरदार निभाने आए हैं देख कोई बुझा-बुझा ,कोई रहता है जलता इन्ही जलते-बुझते रिश्तों
Read Moreशरद में वो ठिठुराने वाली शरद ऋतु में कपकपाते हाथों से, थरथराते होठों से आज भी वो बुढ़िया एक
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