स्मृति के पंख – 45 (अंतिम)
उपसंहार (सबसे छोटे सुपुत्र श्री गुलशन कपूर की कलम से) लगभग 15 वर्ष बीत गये जब पिताजी ने अपने जीवन
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Read Moreफिर केवल के रिश्ते के लिए एक सज्जन मिले श्री फकीरचन्द जी, जिनकी बहन की लड़की के बारे वह केवल
Read Moreअब नये काम के लिए, जो टी0वी0 का लाइसेंस मिला था, काफी रुपये की जरूरत थी। मैंने वह प्लाट जो
Read Moreइसी बीच एक लड़का आकर रमेश के दो जोड़ी के क्रय का व्यौरा लिखाने लगा, जबकि रमेश ने कुछ खरीदा
Read More13 अप्रैल, 1974 बैसाखी का दिन था। मैं आशु को गुलाब की टहनियों से पानी छपका रहा था, रसोई में
Read Moreअनन्त राम को बाकी रुपया तो मैं अदा कर चुका था, सात सौ उसका बाकी रह गया था। जब मिलनी
Read Moreभ्राता जी कभी कभी लुधियाने आते रहते। उनकी जुबानी मोहिनी की अच्छाई और शराफत सुनता तो बहुत अच्छा लगता। शाम
Read Moreघर में अब एक नई पार्टी बन गई थी और इनका बोल बाला था। नई पार्टी में राकेश, गुड्डा, केवल,
Read More1971 में रमेश की नौकरी देहरादून में मिनिस्ट्री आफ डिफेन्स में लग गई और वह देहरादून आ गया। फिर 1972
Read More30 अप्रैल 1957 को राज की शादी हुई। डोली जाने के बाद कुछ ही दिन बाद मुझे तार मिला कि
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