दोहा मुक्तक : चितचोर
1- तोड़ नेह के बाँध तुम, चले गये चितचोर । धधक रही अति वेदना,मचा हृदय में शोर ।। दावे सारे
Read More1- तोड़ नेह के बाँध तुम, चले गये चितचोर । धधक रही अति वेदना,मचा हृदय में शोर ।। दावे सारे
Read Moreमैं धरा अधीर हूँ पीड़ित मन की पीर हूँ। सोखती हूँ हर व्यथा और जमा गई जो नीर हूँ ।
Read Moreज़िन्दगी गुजर ही जाती है पर अभी रश्मि को समझ नहीं आ रहा था कि जीवन का ये अंधेरा कैसे
Read Moreवो लेखिका नहीं थी… वो कवियत्री भी नहीं थी न जाने कब अपने भावो को सरल सहज आकार देने लगी
Read Moreशाम गहरा रही थी। दोनों का एक दुसरे से विदा लेने का वक्त आ चुका था। राजीव अमेरिका जाने
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