लघुकथा – द्वन्द
प्रगति मैदान में पहुँचते ही शीला अचकचा गयी भीड़ को देख।आगे बढ़ी तो कई दुकाने लगी हुई थीं। किस में
Read Moreप्रगति मैदान में पहुँचते ही शीला अचकचा गयी भीड़ को देख।आगे बढ़ी तो कई दुकाने लगी हुई थीं। किस में
Read More“पाँच सौ और हजार की नोटें बंद हो गयीं माँ, दो दिन बाद ही बैंक खुलेगा | तब इन्हें बदलवा
Read Moreआज वक्त है शहनाई का शहनाई बजा लीजिये | आज वक्त है विदाई का आँसू बहा लीजिये | आज वक्त
Read More१..शिक्षा प्रेम की पर नफरत बढ़ती रही जिन्दा थी कभी अब लाश होती रही | २..बेइज्जत नारी की भरे बाजार
Read Moreमाँ तू भगवान से भी अधिक दयालु तेरे आँचल में रहकर सारा सुख पाया गलतियों की सजा ज़रूर देता है
Read Moreदर बदर फिर वोट की भीख नहीं मांग रहे नेता बल्कि हम सबके कर्तव्यों को जगा रहे नेता | आलसी
Read Moreविवाह बंधन तोड़ दूँ क्या अकेला तुझे छोड़ दूँ क्या? हर महीने रख पगार हाथ मायके ओर दौड़ दूँ क्या?
Read Moreअस्पताल के कॉरिडोर में स्ट्रेचर पर विवेक कराह रहा था | डॉक्टर से उसके जल्द इलाज की मिन्नतें करता हुआ
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