आत्मकथा : मुर्गे की तीसरी टांग (कड़ी 29)
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सतलुज छात्रावास में रहते हुए मेरे कई ऐसे मित्र बने जो मेरे सहपाठी नहीं थे। उनमें
Read Moreजवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सतलुज छात्रावास में रहते हुए मेरे कई ऐसे मित्र बने जो मेरे सहपाठी नहीं थे। उनमें
Read Moreवि.वि. में प्रारम्भ में मैं सबसे कटा-कटा रहा। सौभाग्य से वहाँ मेरे कमरे का साथी तथा कुछ पड़ोसी बहुत सहयोगशील
Read Moreमैं लम्बे समय से चेतावनी देता रहा हूँ कि इस्लाम का विनाश निकट भविष्य में अवश्यम्भावी है. कोई अदृश्य शक्ति
Read Moreशीघ्र ही वहाँ से टेस्ट तथा इन्टरव्यू का बुलावा आ गया। तारीख दो-चार दिन बाद की ही थी अतः हमने
Read Moreअध्याय-9: अरावली का उत्तरी छोर मैं अकेले ही चला था जानिबे मंजिल मगर। हम सफर मिलते गये और कारवाँ बनता
Read Moreमेरे अनेक अन्य पत्र मित्र भी रहे हैं। यदि उन सबका विस्तार से परिचय दूँ तो मेरी कलम को कभी
Read Moreशहनाज की तरह ही मेरी एक और पत्र मित्र थी- टीना। उसका असली नाम था ‘मैरीना कोलाको’। वह ईसाई थी
Read Moreपत्र-मित्रता के माध्यम से मुझे कई घनिष्ट मित्र पाने का सौभाग्य मिला, जिनका जिक्र आगे करूँगा। मेरे व्यक्तित्व के निर्माण
Read Moreबहुत से हिन्दू संगठन और व्यक्ति आमिर खान अभिनीत फिल्म ‘पीके’ पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग कर रहे हैं, क्योंकि
Read Moreआगरा में अपनी कक्षा के ज्यादातर लड़कों से भी मेरे सम्बन्ध नाम मात्र के थे। उनकी निगाह में मैं गाँव
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