कविता : जो खुद को सेक्युलर नहीं मानते उनके लिए
बाहर हैं तो अभी सीधा घर जाइये घर जाकर टी.वी. में आग लगाइये सभी जाति -धर्म के लोग दिखाई देगें
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Read Moreहदें निर्धारित हैं नदी की, नहर की, तालाब व समंदर की, और स्त्री-पुरुष की भी। मगर जब टूटती हैं हदें
Read Moreअरमानों की भट्टी हर पल, हरएक के दिल में जलती है। चाहे सब कुछ मिल जाता है; फिर भी कुछ
Read Moreहां पाला है सांपों को मैंने, दंश भी मैंने झैले हैं। मेरी ही छाती पर हरदम क्यों दुश्मन के मैले
Read Moreप्यार हवा जैसा ही तो होता है , चाहते हैं जिसे छूना हर पल । प्यार आँसूं की फुहार है
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