हे भारत कर शत्रु क्षय !
हे भारत ! कर शत्रु क्षय ! शोषित शताब्दी सप्ताधिक अनंतक ! अनाचार अत्याचार दुर्दम्य अरि ! दंभ युक्त वक्ष
Read Moreहे भारत ! कर शत्रु क्षय ! शोषित शताब्दी सप्ताधिक अनंतक ! अनाचार अत्याचार दुर्दम्य अरि ! दंभ युक्त वक्ष
Read Moreकट गए तब , हर ..रिश्तों से । हर दिल मे , जब फरेब देखा ।। रिश्तों के मायने
Read Moreवो इक टूटा-फूटा, उजड़ा मकान है दरवाज़े हैं, खिड़कियाँ हैं,साँकल भी है पुरानी-सी बहुत-से ताले नहीं , इतने बड़े मकान में अब केवल एक ताला है फ़र्श है
Read Moreमाटी के ही तो विभिन्न रूप है भिन्न भिन्न चित्र उन में गढ़ी गई मांसलता उन में उकेरे हुए उभार
Read Moreबीत गईं पतझड़ की घड़ियां, अब बसंत मुस्काएगा, रे मन, अब तो धीर धरो फिर, मन मधुमय हो जाएगा.
Read Moreचुपके से ना जाने कब से मेरी इन चंचल चितवन में, आन बसे हो… तुम चितचोर ! हो खुद से
Read Moreआप सभी के समक्ष एक नयी रचना जिसका शीर्षक है “जोगीरा सा रा रा रा”आप सब का प्यार मिले इसी
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