“कुंडलिया”
खिचड़ी ही लोहड़ी कहीं, पर्व मकर संक्रांति काले तिल में गुड़ मिला, पथ्य सर्व सुख शांति पथ्य सर्व सुख शांति,
Read Moreखिचड़ी ही लोहड़ी कहीं, पर्व मकर संक्रांति काले तिल में गुड़ मिला, पथ्य सर्व सुख शांति पथ्य सर्व सुख शांति,
Read Moreरँगना है मुझे उसी रंग में तुम्हारे जिसमे रंग के मेरी सुबह का सूरज रौशन होता है और मेरी रातें
Read Moreइस चित्र को मैने दो भागों में विभाजित किया है, अपनी रचना के माध्यम से यह जानने की कोशिश की
Read Moreमाँ तुम नहीं पर तुम्हारी निशानी मुझे सदा याद दिलाती रहेगी I मैंने संभाल सजा ली है किताबों में जब
Read Moreमकर संक्रांति की पावन बेला, लगा हुआ पतंगों का मेला, सूर्य-पतंग भी उड़ पहुंचा है, मकर राशि के घर अलबेला.
Read Moreमेरा मन है कि मैं पतंग बन जाऊं मकर संक्रान्ति और पतंगोत्सव की पावन वेला पर सूर्यदेवता की साक्षी में
Read Moreस्त्री है तो सृजन है सृजन है तो संसार है स्त्री से ही संसार है संसार है तो व्याप्त श्री
Read Moreहिंदी बिंदी शालिनी, मेरा हिंद महान वाणी वीणा सादगी, माने सकल जहान माने सकल जहान, हिंदी की दरियादिली सब करते
Read Moreहे विश्वास ! तुम निर्दय, निर्मम धूर्त हो ! अपने पाँव के नीचे हजारों सालों से मानवता को दबाते-दबाते, अट्टहास
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