लघुकथा- परम्परा
लघुकथा – परम्परा ”यह असंभव है. हमारे यहां ऐसा नही होता है,” उस के ताऊजी ने जम कर विरोध किया.
Read Moreलघुकथा – परम्परा ”यह असंभव है. हमारे यहां ऐसा नही होता है,” उस के ताऊजी ने जम कर विरोध किया.
Read Moreपंडित भरोसे लाल अपने आपको बड़ा ही सटीक भविष्यवक्ता बताते थे । उनका दावा था कि उनकी बताई भविष्यवाणियाँ शत
Read More“क्या कहा 500 रूपये… एक बार की परिक्रमा के वो भी… रिक्शे में सिर्फ बच्चे को ही बैठना है,, हम
Read Moreअरे यार!!!श दिल्ली में आजकल गंदगी बहुत हो गई है, जहां पर देखो गंदगी के ढेर लगे रहते हैं और
Read More“मैं अभी आई।” कहकर वह ‘पगली’ एक ओर को भाग गयी और वह हाथ में आई चोट पर ध्यान देने
Read Moreझरने से शुरू होकर अपने आप मे अनगिनत धाराओं को समेटे, बिना थके, बिना रूके अपनी मौज में बहना जानती
Read Moreसड़क पार स्थित लाला जी की दुकान से अवसादित मन लिये लौटी दिव्या पलंग की पीठ से सिर टिकाए आँखें
Read More“एऽऽऽऽ कोन है रे तुमलोग? बचाओऽऽ बचाओऽऽ अरे पकड़ो……..” हथियारबंद नकाबधारियों से अपनी पोती को छीनते रामनाथ बाबू की आर्त
Read Moreचुनाव हमारे जीवन का अंग बन गया है जो आए दिन कहीं न कही, कभी प्रादेशिक तो कभी राष्ट्रिय त्यौहार
Read More