उऋण
पौष माह की कँपकँपाती सर्दी जिसमें रजाई कँबलों में दुबके लोग मुँह बाहर निकालने से भी डरते हों ऐसे में
Read Moreसौजन्य भेंट “पापा, आपको जब भी कोई साहित्यकार मित्र अपनी पुस्तक भेंट करते हैं, तो वे बाकायदा आटोग्राफ देकर ही
Read Moreनौ बज चुके थे ।बड़ी सी ताला लगा दोनों निकल पड़े अपनी मंजिल की ओर । कागज पलटते कब स्ट्रीट
Read Moreबधाई के बहाने “हेलो, रमेश जी बोल रहे हैं न ?”“हाँ जी सर नमस्कार। रमेश ही बोल रहा हूँ।”“नमस्कार रमेश
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