गीतिका
बिना बुलाए किसी के भी घर जाना न पड़े,ईमान बेचकर रोटी हमें खाना न पड़े, मुझे इतना ही दे देना
Read Moreखेतों से मृदा उठाते, रौंद–रौंद वे मिलाते हैं अपनी हथेलियों से, चाक में बिठाते हैं। वृत्ताकार घूम घूम,पहिए में झूम
Read Moreअजन्मी थी मैं जब किया होगा प्रथम संवाद मां की याद है मुझे जबसे है अपनी याद मौन की शक्ति
Read Moreसुबह हो या शाम वो बस मसरूफ़ ही रहती है, इतवार हो या के कोई भी छुट्टी काम में लगी रहती
Read Moreबनें देश के भक्त, सहज पहचान नहीं।धन में ही आसक्त, हमें क्या ज्ञान नहीं?? बस कुर्सी से मोह, नहीं जन
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