ग़ज़ल : हुमकते खेलते बच्चों का वो मंज़र दिखाई दे
हुमकते खेलते बच्चों का वो मंज़र दिखाई दे तसव्वुर मैं करूँ जन्नत का मुझको घर दिखाई दे बिछड़कर अपनों से
Read Moreहुमकते खेलते बच्चों का वो मंज़र दिखाई दे तसव्वुर मैं करूँ जन्नत का मुझको घर दिखाई दे बिछड़कर अपनों से
Read Moreमिट गये देश के जो सृजन के लिए रह गये शेष हैं स्मरण के लिए । काश, पुरखों के अरमान
Read Moreकोई सूरत हो ज़िम्मेदारियों की याद रहती है मुझे हर वक़्त अपनी बेटियों की याद रहती है बड़े शहरों में
Read Moreगज़ब हैं रंग जीबन के गजब किस्से लगा करते जबानी जब कदम चूमे बचपन छूट जाता है बंगला ,कार, ओहदे
Read Moreखुशी में ग़म में ढलती जिन्दगानी एक जैसी है जुदा हैं नाम सबके और कहानी एक जैसी है नदी दरिया
Read Moreदिलों में चाह होती है कभी ख़ंजर नहीं होते हमारे गाँव में ये बदनुमा मंज़र नहीं होते वो खुश रहते
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