ग़ज़ल
टूटती झोंपड़ी पर गिरी बिजलियाँ शोर में गुम हुई दर्द की सिसकियाँ । याद इतना न मुझको किया कीजिये
Read Moreमापनी : 212 , 212 , 212 ,212 ” ================================== प्रेम पथ के पथिक – रोज आते रहे / दर्द
Read Moreजो रस्ते क्रूर होते, कंटकों वाले। चला करते हैं उनपर, हौसलों वाले। जड़ों से हैं जुड़े तरुवर, ये जो इनको
Read Moreये बचपन चार दिन का है जवानी चार दिन की है. सही पूछो तो पूरी ज़िंदगानी चार दिन की है.
Read Moreवो जमीं प्यार की, याद आने लगी वीणा बिनतार ही, कुनमुनाने लगी किस धुन पे चढ़ी, बावरी झुनझुनी अंगुलियाँ आपही,
Read Moreतुम्हें ख़त लिख रहा हूँ | लगी लत लिख रहा हूँ || ** दीवारें वालिदा को | पिता छत लिख
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