गीत – छलिया आदमी
आदमी ही आदमी को छल रहा है। आदमी से आदमी क्यों जल रहा है।। मान – मर्यादा हुई तार –
Read Moreआदमी ही आदमी को छल रहा है। आदमी से आदमी क्यों जल रहा है।। मान – मर्यादा हुई तार –
Read Moreजो मेरा मनमीत बन गया। जीवन का संगीत बन गया।। जीवन की राहें रपटीली। उबड़ – खाबड़ और कँटीली।। हर
Read Moreहौंसलो को आजमाओ ,साथ साहस का न छोड़ो । लाख भय हो हारने का ,तय सफलता भी मिलेगी । मत
Read Moreतुम्हीं से बहती है दिल में खुशहाली की एक धारा तुमसे ही तो है रौशन गली आंगन ये चौबारा तुम्ही
Read Moreख्वाबों के सारे रंग वो झूठे हुए हैं क्यों शय सारे मेरे नाम से रूठे हुए हैं क्यों क्यों बहारें
Read Moreनयन से आज ओ प्रियतम नयन ये चार होने दो। कि ये तन आज फिर से प्रेम की बीमार होने
Read Moreइंतजार के उस मौसम में ,तेरी यादें महकाती थी । अक्सर जो दिल बोझिल होता ,आ चुपके सहला जाती थी
Read Moreआस न भूलो कभी अरमान न भूलो कभी सबका दाता एक है भगवान न भूलो कभी जीवन में आएं हैं
Read Moreसभ्यता, शालीनता के गाँव में, खो गया जाने कहाँ है आचरण? कर्णधारों की कुटिलता देखकर, देश का दूषित हुआ वातावरण।
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