गिरगिट ज्यों, बदल रहा है आदमी।
गहन लगे सूरज की भांति ढल रहा है आदमी।अपनी ही चादर को ख़ुद छल रहा है आदमी॥ आदमी ने आदमी
Read Moreगहन लगे सूरज की भांति ढल रहा है आदमी।अपनी ही चादर को ख़ुद छल रहा है आदमी॥ आदमी ने आदमी
Read Moreसंबन्धों पर स्वार्थ है हावी, रिश्तों में ना मेल है। जीवन अब बाजार में बिकता, संबन्ध बने यहाँ खेल है।।
Read Moreमेरे सीने में जो दिल है,उसमें बस तेरी घड़कन है।मिले नहीं हो तुम वर्षों से,इसीलिए यह तड़पन है। बसा लिया
Read Moreऐसे ही नही , आसानी से हमहम पान मसाला, बन पाते हैं।। दुनिया भर की, हानिकारक चीजोंका बड़े चाव से,
Read Moreनहीं कोई है अपना यहाँ पर, कोई नहीं पराया है। गैरों ने भी गले लगाया, अपनों ने ठुकराया है।। संबन्धों
Read Moreराही हूँ, नहीं कोई ठिकाना, किसी से विशेष संबन्ध नहीं हैं। नहीं चाहत, नहीं इच्छा कोई, तुम पर कोई बंध
Read Moreप्रेम है निष्ठा, प्रेम समर्पण, प्रेम में कोई जीत नहीं है। प्रेम है जीवन, प्रेम है सपना, प्रेम की कोई
Read Moreमैं नित-रोज अकेला छुप-छुपकर, दुनिया से अकेला रोता हूँ।बीती उन यादों की मस्ती को, अब गीत बनाकर गाता हूँ।अफसोस बचा
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