हमीद के दोहे
इसकी हमको क्या पड़ी, क्या करता दरबार। आपस का रिश्ता हमें, खुद करना हमवार। पहल ज़रूरी काम में, बनिये ज़िम्मेदार।
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Read Moreथी दीवानी श्याम की,मीरा जिसका नाम। जो युग-युग को बन गई,हियकर अरु अभिराम।। पिया हलाहल,पर अमर,पाया इक वरदान। श्रद्धा से
Read Moreकाटोगे तो जिंदगी बस, ये केवल बोझ लगती हैजीने जो लग जाओ तो, जिंदगी ये मौज लगती है।फिक्र फेंक दो
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