दोहे – गुरु महिमा
गुरु सत चित आनंद है , अविचल और अपार | संशय मिट जाते सभी , हो भव सागर पार ||
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Read Moreइत देखूंँ परिवार या, उत देखूँ मै देश ! जीवन के बाजार मे,ऐसा फँसा रमेश ! ! पिछड़ेपन की देश
Read Moreहर पल मेरा दिल अब नग़मा तेरे ही क्यूं गाता है देखे कितने मंजर हमने तू ही दिल को भाता
Read Moreसादर नमन साहित्य के महान सपूत गोपाल दास ‘नीरज’ जी को। ॐ शांति। सुना था कल की नीरज नहीं रहे।
Read Moreजुगनू सा जीवन कहो , दप दप करती आस ! तम से लड़ना है यहां , जब तक घट में
Read Moreविधान – 25 मात्रा, 13,12 पर यति, यति से पूर्व वाचिक 12/लगा, अंत में वाचिक 22/गागा, क्रमागत दो-दो चरण तुकान्त,
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