“मुक्तक”
शांति का प्रतीक लिए उड़ता रहता हूँ। कबूतर हूँ न इसी लिए कुढ़ता रहता हूँ। कितने आए-गए सर के ऊपर
Read Moreजुगनू सा जीवन कहो , दप दप करती आस ! तम से लड़ना है यहां , जब तक घट में
Read Moreविधान – 25 मात्रा, 13,12 पर यति, यति से पूर्व वाचिक 12/लगा, अंत में वाचिक 22/गागा, क्रमागत दो-दो चरण तुकान्त,
Read More(१) प्रकृति के क्षरण से तड़पती है धरती | नयन नीर सूखा सिसकती है धरती | न वन हैं घनेरे
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