स्वयंप्रभा
निरर्थक साधनाओं में कैद होता संसार तुमको तलाशता सुदूर तीर्थों में और मैं लिखती हूं तुम्हारी विस्तृत हथेली पर वो
Read Moreनिरर्थक साधनाओं में कैद होता संसार तुमको तलाशता सुदूर तीर्थों में और मैं लिखती हूं तुम्हारी विस्तृत हथेली पर वो
Read Moreक्या पाया जड़ों से कट कर क्या पाया गांवों से हट कर भूखे बच्चे तड़प रहे हैं बूंद-बूंद को तरस
Read Moreमैं बीज हूँ दबा हूँ मिट्टी में ॉछुपा बैठा हूँ देखता इर्दगिर्द। मैं सदा सादा जीवन जीता हूँ भरता हूँ
Read Moreउन्मुक्त पंछी के जैसे; उसे भी गगन में उड़ने दो, जाने दो,उसको मत रोको,अपने मन की करने दो। हंसने,खेलने और
Read Moreखोल दो मुट्ठी ….. खोल दो मुट्ठी, बिखेर दो कंचे, उड़ा दो पतंगें, गगन में ऊंचे! आसमां को छूना है,
Read Moreहर वर्ष जला रावण जलकर सम्पूर्ण रूप ना मर पाया हर पाप पुण्य के बन्धन में फँस कर कोई ना
Read Moreकशमकश भरी जिंदगी आपाधापी और उठापटक के बीच कभी वक्त ही न था जिन्दगी के पास सुहाने स्वप्नों को सजाते
Read Moreप्रजातंत्र का हाल बुरा है, जनता ने जनता को ठगा है। लोग कर रहे हाहाकार, चारों तरफ़ है भ्रष्टाचार।
Read Moreदुःखी होकर करची बोला, कलम से जमाना बीत गया जब छिलकर मुझे कलम बनाया जाता नित्य लिखने के लिए दवात
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