गीत – जोगन समझ नहीं पाई
दृग रोए हँसे अधर धर कर, मुस्कन की झूठी अरुणाई,मैं सरित चंचला सागर को,सर्वस्व समर्पित कर आई….वह बाहु पाश जो
Read Moreदृग रोए हँसे अधर धर कर, मुस्कन की झूठी अरुणाई,मैं सरित चंचला सागर को,सर्वस्व समर्पित कर आई….वह बाहु पाश जो
Read Moreअपने हाथों को फैलाकर, दिन का स्वागत करती हूँ।पंख नहीं दिखते हैं मेरे, किंतु उड़ानें भरती हूँ ।। सूरज ने
Read Moreयाद मुद्दत से वो है आया कहाँ,गुफ्तगू प्यार की सुनाया कहाँ,जुस्तजू दिल की वह बताया कहाँ,रूबरू खुल के अभी आया
Read Moreझम-झम बरसत,मन मम तरसत,कब तक लखब सजन पथ न। पल-पल कट-कट करत ननद घर,कब लग सहब सजन हम डर-डर,नभ घन
Read Moreदीपों से अंधकार न मिटता, अन्तर्मन का, दीप जलायें। प्रतीकों को छोड़ बर्ढ़े अब, स्वच्छता का, अलख जगायें। अविद्या का
Read Moreतुम हो जब तक तभी तक आनंद मेरा,तुम आई तो जीवन में आया नया सबेरा ।थकी -थकी सी जिन्दगी दर्द
Read Moreनारी को नर प्राण से प्यारा, नर को भी, नारी प्यारी है। एक सिक्के के दो हैं पहलू, एक नर
Read Moreथाल सजाकर बहन कह रही,आज बँधालो राखी।इस राखी में छुपी हुई है, अरमानों की साखी।।चंदन रोरी अक्षत मिसरी, आकुल कच्चे-धागे।अगर
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