कविता
अपना सामां बांध बटोही सांझ हुई चल घर चलते हैं।कल आया तो कल देखेंगे सांझ हुई चल घर चलते हैं।।
Read Moreमैं ही हूं , छोटी इ, और मैं ही बड़ी, ई की प्रदातासदियों से, चली आ, रही है मेरी अलौकिक,
Read Moreभैंस बराबर काला अक्षर चल जाएगा। चपरासी हो पढ़ा लिखा ही बहुत जरूरी।डिग्रीधारी को चुन पाना है मजबूरी।। धीरे -धीरे
Read Moreये दरकते पहाड़, ये खिसकती ज़मीनें,नदियों में बहकर, सिमटती ज़मीनें,ये पानी की बूंदे डराने लगी हैं,ये जबसे ज़मीं को बहाने
Read Moreजुदा हो करके के तुमसे अब, तुम्हारी याद आती हैमेरे दिलबर तेरी सूरत ही मुझको रास आती है कहूं कैसे
Read Moreजलते अलबत्ता लाखों दीपक संसार में।आओ एक दीप जलाए इस प्यार में।अनुकंपा की सौगात है।दीवाली वाली रात है।राजाओं की झोली
Read Moreदुश्वारियां कितनी भी हों, कर्तव्य पथ पर बढ़ता जा।हिम्मत कभी नहीं हारना, तूफानों से भिड़ता जा। अपने कर्म से ही
Read Moreजगह-जगह छिपे हुये यहां आदमखोर हैऐसे लोगों का आजकल देखो जोर हैं बंद है सुविधा यहां काली तिजोरियों मेंऔर मची
Read Moreपरिवर्तन से भय कैसा, करनी से फल मिलता वैसा।सत्य कर्म सब दूर हुए हैं, भगवन भी मजबूर हुए हैं।जैसा बीजा
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