मुक्तक
01चतुर अपनी एक बात से हंगामा बरपा देता है,हंगामें के भीतर सारी कमजोरी छुपा लेता है,जैसे ही कांपने की नौबत
Read Moreयह सत्य है कि सब लोग,रिश्तों में तनाव आने नहीं देना चाहते हैं,मगर भरोसा नहीं है तो,सब कुछ पीछे छोड़
Read Moreसंसद में मचता गदर, है चिंतन की बात।हँसी उड़े संविधान की, जनता पर आघात॥ भाषा पर संयम नहीं, मर्यादा से
Read Moreतन्हाई में कभी चुपके से आनामन मष्तिष्क पे दस्तक दे जानादिल की हवेली का खोलुँ मैं द्बारमुस्कुरा कर समां जाना
Read Moreविघ्नों का पर्वत भी उखड़े,संघर्षों का ग्लेशियर पिघले,हाथ-से-हाथ मिलकर चलना,सागर जीत के मोती उगले।किसी से प्रतिस्पर्धा क्यों करना,किसी को पीछे
Read Moreअद्भुत चलन संस्सार काजीता न कोई होड़कर।कुछ भी न जीवन में बचादेखा घटाकर – जोड़कर। यादें पिघल, झरने बहेकटु शब्द
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