हरि अनंत हरि कथा अनंता
जीवन जग में हरि रूप अनंतरसजा-समाया सदैव मन भीतर रहे बाट जोहे जीवन भरआज हुआ संपूर्ण अति सुंदर राम मेरे
Read Moreजीवन जग में हरि रूप अनंतरसजा-समाया सदैव मन भीतर रहे बाट जोहे जीवन भरआज हुआ संपूर्ण अति सुंदर राम मेरे
Read Moreबिखर रहे चूल्हे सभी, सिमटे आँगन रोज।नई सदी ये कर रही, जाने कैसी खोज॥ पिछले कुछ समय में पारिवारिक ढांचे
Read Moreगया देश को भूल, सत्ता – मद में आदमी।नाशी बुद्धि समूल,कर्म-धर्म करता नहीं।।जन-सेवा से दूर, सत्ता के भूखे सभी।भावहीन भरपूर,
Read Moreगंगा यमुना सरस्वती, प्रियल त्रिवेणी धार।अग-जग को नित तारती,करती जन उपकार।। महाकुंभ मेला लगा, तीरथराज प्रयाग,मन मैला अघ ओघ से,मन
Read Moreजंगल में मंगल कर आएँ।चलो साथियो नाचें – गाएँ।। घनी झाड़ियाँ काँटों वाली।बजा रहीं पत्तों की ताली।।काँटे नहीं कहीं चुभ
Read Moreमैं एक नन्हा – सा मच्छर हूँ।यह आप सब बहुत अच्छी तरह से जानते हैं।जितना ही मैं आपके निकट आता
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