लघुकथा

श्रेय

उमेश जी,आपने तो कमाल कर दिया! आपकी सफलता पर मेरी तरफ से बधाई स्वीकार करें। आप सभी का धन्यवाद। आज उमेश जी का सपना पूरा हो गया था।बहुत सालों से वह  इस उपन्यास पे काम कर रहे थे। पहले भी उन्होंने कई उपन्यास लिखें थे,पसंद भी किए गए थे।पर उनका मन प्रसन्न नहीं था।वह लिखते थे,पाठक पढ़ते थे।सभी उनकी लेखनी की भूरि-भूरि प्रशंसा भी करते थे।
वह एक बहुत सुन्दर उपन्यास लिखना चाहते थे।वह इसी के लिए बहुत प्रयास कर रहे थे।आखिर उन्हें सफलता मिल गई थी।यह एक नारी-प्रधान उपन्यास था। इसे इतनी सराहना मिली थी।चारों ओर से उन्हें बधाइयाँ ही बधाइयाँ मिल रही थी।कल उन्हें एक साहित्यिक संस्था सम्मानित करने जा रही थी।सारी तैयारी हो चुकी थी।पर उन्हें नींद नहीं आ रही थीं।उनका मन बैचेन था।वह बिस्तर पर बार-बार करवट बदल रहे थे।तभी पत्नी ने पास लेटते हुए कहा।आप इतने बैचेन क्यों लग रहे है, मैं आप के लिए एक गोली लाती हूँ, चाय के साथ ले लेना,आराम मिलेगा? वह उठकर किचन में चली गईं?वह अपनी पत्नी के बारे में सोचकर परेशान हो उठे।कैसी आज्ञाकारी पत्नी मिली है मुझें, कभी किसी काम को मना नहीं करती?हमेशा नतमस्तक रहती हैं। इसका सारा जीवन मेरे ही चारों ओर घूमता रहा हैं।मेरी हर इच्छा पूरी करना इसका पहला कर्तव्य रहा।क्या यहीं इसकी जिंदगी है?ना कभी कोई जिद,ना ही कहीं घूमने का आग्रह।इतना समर्पण,बच्चों का पालन-पोषण, पढ़ाई-लिखाई,सब इसने अकेले ही कर लिया। कभी कोई शिकायत नहीं की। कुसुम चाय लेकर आ गई। कुसुम, क्या तुम भी मेरे साथ कल दिल्ली समारोह में चलोगी? प्लीज मना मत करना, ठीक हैं फिर वही संक्षिप्त सा जवाब।
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच उमेश जी को फूलों की माला पहना दी गई। उनसे दो शब्द कहने के लिए कहा गया। उन्होंने सभी चाहनेवालों का आभार व्यक्त किया। आप सभी मुझें  इस सफलता का श्रेय दे रहे हैं। पर इस सफलता की असली हकदार मेरे पत्नी कुसुम है। उसी के समर्पण तथा सहयोग से मुझें ये सम्मान मिला है।उन्होंने कुसुम को मंच पर बुलाया और फूलों की माला उसके गले में डाल दी। तुम ही इस श्रेय की सच्ची हक़दार हो।सभी ने कुसुम जी के सम्मान में जोरदार तालियाँ बजाई। काश हर पति अपनी जीवन- साथी को अपनी सफलता में बराबर का श्रेय दे। कुसुम ,उमेश जी को देखकर मुस्करा रही थी।

— राकेश कुमार तगाला

राकेश कुमार तगाला

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