Author: *मदन मोहन सक्सेना

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : गज़ब हैं रंग जीबन के

गज़ब हैं रंग जीबन के गजब किस्से लगा करते जबानी जब कदम चूमे बचपन छूट जाता है बंगला ,कार, ओहदे

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गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : हर पल याद रहती है निगाहों में बसी सूरत

सजा क्या खूब मिलती है किसी से दिल लगाने की तन्हाई की महफ़िल में आदत हो गयी गाने की हर

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गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : निगाहों में बसी सूरत

कुछ इस तरह से हमने अपनी जिंदगी गुजारी है जीने की तमन्ना है न मौत हमको प्यारी है लाचारी का

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गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : बचपन यार अच्छा था…

जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भी बचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता था बारीकी जमाने की, समझने

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गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : आये भी अकेले थे और जाना भी अकेला है

पैसोँ की ललक देखो दिन कैसे दिखाती है उधर माँ बाप तन्हा हैं इधर बेटा अकेला है रुपये पैसोँ की

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