गीतिका/ग़ज़ल

भूकंप

अगर भूकंप आएगा बदल देगा कहानी को न देखेगा बुढ़ापे को ना बचपन और जवानी को इमारत और भवन बहु मंजिलें ढह जाएंगे सारे बचे कुछ खंडहर से घर बतायेंगे वीरानी को गिरेंगे भरभरा कर पुल सुनामी साथ गर आई नहीं रोका गया है आज तक इस बहते पानी को लिए परमाणु बम बैठे बहुत […]

कविता

मूरख हिंदू कब जागेगा

मूरख हिंदू कब जागेगा गहरी निंद्रा को त्यागेगा बढ़ा रहे हैं वह आबादी देश से छीनेगे आजादी मजहब से कानून बनेगा वह भी अफलातून बनेगा जो इसका प्रतिरोध करेगा वह तय है मारा जाएगा समय नहीं बचा है जादा कर लो अपना नेक इरादा जाना है मंदिर में जाओ मत मजार पर शीश टिकाओ — […]

गीत/नवगीत

कैसे कह दें नया साल है

सुबह दोपहर शाम वही है और रातों का वही हाल है कुछ भी नया नहीं है यारों कैसे कह दें नया साल है चारों तरफ सुशासन फैला जनता त्रस्त मस्त सब नेता टोपी लगा मुखौटा पहने जिसका जो मन हो कह देता गलती पर गलती कर कहते यह विपक्ष की नई चाल है कुछ भी […]

बाल कविता

वर्णमाला ज्ञान

अ से अक्षर ज्ञान बना है आ से है आदर्श बना इ से इमली ई से ईख उ से उत्तम दर्श बना ऊ से ऊंट है कूबड़ वाला ए से अक्षर एक बना ऐ से ऐजी ओ से ओजी अं से है अंगार बना ऋ से ऋषियों के द्वारा ही सभी स्वरो ज्ञान मिला क […]

मुक्तक/दोहा

मुक्तक

दीपोत्सव है मन आल्हादित दिव्य मुहूर्त का अभिनंदन है दिव्य अयोध्या बुला रही है बहुत वहां जाने का मन है सतत सत्य के दीपक जलकर सारे जग को बतलाते हैं मिटना अंधकार की सत्ता होना तय अब परिवर्तन है – मनोज श्रीवास्तव

कविता

कविता

जो गया यहाँ से दुनिया से वह भी तो नहीं बता पाता कोई रोक नहीं पाता उसको जाने वाला जब भी जाता बस स्मृतियां रह जाती हैं जो अपनों को अकुलाती हैं फिर रंग बिरंगी दुनिया का यह माया जाल है छा जाता पढ़ रखा किताबों में हमने है स्वर्ग कहीं है नर्क कहीं पर […]

गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

शाख से टूटे हुए पत्ते बताते हैं व्यथा कल हमारे दम से रौनक थी इसी गुलजार में और सूखे फूल भी कहते हैं अपनी दास्तां हम बहुत महंगे बिके थे कल इसी बाजार में था कोई पुरनूर चेहरा भी हमारी बज्म में तय है छप जाएगा यह भी एक दिन अखबार में दोस्तों इस गलतफहमी […]

मुक्तक/दोहा

मुक्तक

तीर्थ स्थल में या मंदिर मेंजो अश्लीलता दिखाएगा वह असभ्य अपने कर्मों का तुरत वहीं फल पाएगा संस्कार मर्यादा भूले झूल रहे हैं कामुक झूले दुर्गंधित करते समाज को समय सबक सिखलाएगा — डॉ./इं. मनोज श्रीवास्तव

गीतिका/ग़ज़ल

बिगड़े बोल सियासत के

तोड रहे सब मर्यादाएं बिगड़े बोल सियासत के देखो क्या क्या रंग दिखाए बिगड़े बोल सियासत की सबसे ऊपर राष्ट्र हमारा नहीं ध्यान में रखते हैं देखो किस से क्या करवाएं बिगड़े बोल सियासत के जनता भेड़चाल कहलाए पर नेता भी उधर चले भैंस के आगे बीन बजाएं बिगड़े बोल सियासत के गर्मी छाई है […]

कविता गीत/नवगीत

मैं अगम अनाम अगोचर हूँ

मैं अगम अनाम अगोचर हूँ ये सृष्टि मेरी ही परछाई मैं काल पुरुष मैं युग द्रष्टा मानव की करता अगुआई मेरी भृकुटि स्पंदन से आती हर युग मे महा – प्रलय मैं अभ्यंकर मैं प्रलयंकर हर युग मे मैं ही विष पाई मैं सतयुग का हूँ सत्य स्वयं जो शाश्वत है अविनाशी है त्रेता युग […]