स्कूल की तख्ती अर काली स्याही की दवात आखर था वो बैट-गिण्डी का खैलणा चलौ बताऊँ थामनै म्हारै बचपन की बात कुश्ती आलै जोर होया करदै सबैरे उठ की खूब भाज्या करदै कुड़तै पजामै कै जिब ठाठ थै बाजै आगै चौकड़ी पै नाच्या करदै पींग घाल्या करदै रूखां पै तो बस करड़ी गांठ दैख्या […]
Author: प्रवीण माटी
जीवन
रोते हुए आना सबकी दुआएँ लेना हर्षोल्लास में सबको मुस्कुराहट देना जन्म किलकारियों से गुंजायमान आंगन खुशियों में सब निहराते एक दर्पण शुभकामनाओं का दर पर आना बधाई हो बधाई हो सबको बताना बचपन जिम्मेदारियों से कोसो दूर अठखेलियों का अनंत सागर खट्टे मिठ्ठे अनुभवों से देख भरी हुई है बचपन की गागर युवावस्था […]
उपरवाला
उपर वाला निरंकार है जनमानस का आधार है सुन ले विनति अंतर्यामी तेरी महिमा अपरंपार है जो पड़ा है अधर्म के पग में उसका मन सारथी फरार है भज ले जो नाम तेरा उसका बेड़ा फिर पार है हो तुम ज्योति सबकी अनंत तक चाहे कितना ही फैला अंधकार है जो जप लें नाम प्रभु […]
मेरा भाई
कदै भी पड्या मैं तनै ठाया भाई हर एक जिम्मा तनै निभाया भाई मै तो जिब कसूता ऐ डरया करदा साईकल पै पहली तनै चलाया भाई मै तो कतई धूल तेरे स्नेह का फूल नूये खिलेगा सच बताऊँ तेरे बरगा भाई नहीं मिलेगा कदै तै दिलखोल कै जिणियां सै किसे तै बी कोनी डरदा […]
माँ
जीवन संघर्ष दाना-पानी हर्ष पंख उड़ान माँ ही अभिमान घोसला निगरानी आँख खुलने तक माँ की महरबानी रास्ता दिखाती रोज आँचल में उसके मौज कठिनाई सहन सीना तान माँ ही हमारी पहचान
सियासत
सियासत पनपती है बड़े घरानों में किलकारियां गुंजती हैं शहजादों की दुसरी तरफ पैदा होते हैं ! वोट दर्जनों की तादाद में रोते-बिलखते संघर्ष की बेड़ियों को तोड़ इक्का दुक्का निकल जाते हैं शिक्षा को पतवार बना! बाकि तिल-तिल कर बस वोट देते हैं अशिक्षित शहजादों के लिए जो अपाहिज करते हैं प्रजातंत्र को […]
ख्वाब
सुर्यास्त और ध्यान मैं और ख्याल शब्द और उन्माद शांति और विवाद कुछ गुलाम और आजाद आहट और शोरगुल इशारे और भूल बचपना और धूल कुछ पहलू जिंदगी के अनछुए नलकूप ,पगडंडियां और कूएं महरबानी,षड्यंत्र और जाल मैं,अकेलापन और ख्याल
एक माँ के बेटे चार
संवेदनाएं नहीं है एक मां के बेटे चार कौन देगा रोटी अब हो रहा विचार झगड़ा हुआ रात भर बिना परिणाम सुबह नार ने किया सब बेकार एक मां के बेटा चार संवेदना बची कहां जब कोई सुनता नहीं मां है सबकी अब लेकिन कोई चुनता नहीं प्रलय आएगी वो सुन रहा है ऊपर […]
जी ले जीवन
अचेतना से निकलकर भविष्य की ओर झाँकती हुई नवस्फुटित कोंपलें जीवन की सार्थकता को परिभाषित कर रही है नर होकर भी निराश मन क्यों तेरी जिंदगी मुसीबतों से डर रही है थककर हार ना मान अंदर की जीवन शक्ति को पहचान बस चलते चलते चलते चल परिस्थितियों के दलदल से अब निकल घूम कर देख […]
सवाल
परछाइयों के शहर में क्या मैं खुद को ढूंढ पाऊंगा ? एक दिल लेकर आया हूं तेरे पास क्या खाली हाथ यहां से जाऊंगा? देखा मैंने घूम कर यहां पर कोई राधा है कोई मीरा है मैं बैठा हूं राह तकता तुम्हारी मेरे पास सवालों का जखीरा है