सिमटा हुआ विविध रंग रूप स्टेशन पर| दूर गंतव्य द्रुतगामिनी यात्री प्रतीक्षारत| दो पाट मध्य दौड़ती जीव यात्रा स्वमेव लक्ष्य| गठरी बाँध मुसाफिर चलता गंतव्य तक| दूर गंतव्य द्रुतगामिनी यात्री प्रतीक्षारत| ट्रेन-जीवन लौह पथ होकर प्राप्त गंतव्य| द्रुतगामिनी दुःख सुख है संग जीवन पथ| भागती रेल ठहरी सी जिन्दगी दौड़ते लोग| चीख पुकार भगदड़ मचती […]
Author: *सविता मिश्रा
*** “दरिंदगी” ***
मौन की भाषा भी नहीं समझतें अब लोग!! मासूमियत भी आँखों में नहीं देखते अब लोग !! बेजुबानों का भी कर देते हैं बलात्कार उनकी इज्जत कर देते हैं तार-तार चाहे कोई बच्ची हो या फिर नार !! मासूम निगाहों में झाँकते तो दिखती बोल नहीं पाई तो क्या, चीखी तो होगी न मूक भाषा […]
कहानी : स्त्रीत्व मरता कब है
नक्सली लड़कियां जंगलो में भटक भटक थकान से टूट चुकी थी थोड़ा आराम चाहती थी. तभी संगीत की मधुर आवाज सुन ठिठक गयी| ना चाहते हुए भी वे मधुर आवाज की ओर खींचती चली गयी| गाने की मधुर आवाज की ओर बढ़ते बढ़ते वह गाँव के बीचोबीच आ पहुंची. एक सुरक्षित टीले पर चढ़ कुछ […]
धुन वुन मैं क्या जानू रहे जानू तो जानू बस भावो को शब्द देना जानू रे
गिरने वालो जरा संभल जाओऊँचाई छूनी गर बदल जाओमिलते ख़ाक में ना लगेगी देरपुन्य रस्ते पर जरा टहल जाओहासिल ना होगा नफरत से कुछप्यार मिलता है गर बहल जाओशौक पालना है तुम्हें तो खूब पालोजिन्दगी में कर ना खलल जाओयाद आता रहे तू हमे बदस्तूरमुहब्बत की कर ऐसी पहल जाओ सविता मिश्रा
++पिता लाडली ++
शिखा अपने पड़ोसन अमिता और बच्चो के साथ पार्क में घुमने गयी. चारो बच्चे दौड़ भाग करने में मशगुल हो गये. शिखा भी अमिता के साथ गपशप करने लगी. गाशिप करते हुए समय का पता ही ना चला. पता तब चला जब घर पर पहुँच शिखा के पति उमेश का फोन आया. शिखा अपने बच्चो […]
भूला भटका सा
========== आज दिल कर रहा है कुछ याद करूं अपना ही भूले-भटके हुये गुनाहों को खुद से ही फ़रियाद करू जो गुनाह किये आखिर क्यों किये जो फल भुगता वह किस गुनाह का था कुछ चिंतन करूं कितने बड़े गुनाह की कितनी छोटी सजा मिली कुछ तो था रहम प्रभु का कुछ तो उसको मै […]
कविता : गर्व होना चाहिए
नारी क्यों ढाल बने नर की उसे तो भाल बनाना चाहिए उसको ढाल बनाये जो नर उसका नहीं इस्तकबाल होना चाहिए पुरुषो की अहमी सोच को हमेशा किनारे रखना चाहिए नर दिखाए जो तेवर तो नहीं निराश होना चाहिए दुर्गा चंडी नारी का ही रूप है उसे यह अहसास होना चाहिए दरिंदो के मन में […]
कविता : बेचारी की बेचारी रही
झाँसी की रानी थे हम तुम नौकरानी बना दिए, फूलों पर रक्खोगे यह कह हमें प्यार का झांसा दिए|| मौन रहते हैं तो कहते हो मुहं हम फूला लिए, बोलते हैं तो कहते हम घर सर पर क्यों उठा लिए|| बना भोजन करती इन्तजार तेरा तो कहते हो क्या हैं यह नौटंकी, खा-पीकर सोने चली […]
हायकू : धरती – २
वृक्ष कटन हताहत धरती खल इंसान| सलिल लुप्त सुबकती धरती वीरुध शून्य| धरती पुत्र नीलाम की अस्मिता धन के लिए| हृदय घाव दिखलाती धरती दरार रूप| आहत आज दिव्य पदार्थ धार्या दुखित हुई| स्वर्ग कश्मीर भारत भूमि शोभा तुषार पर्त| — सविता मिश्रा
हायकू : धरती – १
जेवर वृक्ष धरती हरी भरी गर्व करती| बंजर हुई हिय कर्म मानुष प्रसूता धरा| भू-गर्भ जल कराहती धरती अति दोहन| नेह अपार धरती गदराई सुधा बरसे| मानुष जात हर विधि दोहन दनुज धरा| — सविता मिश्रा