मेरी कहानी 91
हमारा जहाज़ अमृतसर छोड़ चुक्का था और हम बादलों के ऊपर उड़ रहे थे. कुलवंत मुरझाई सी लग रही थी
Read Moreहमारा जहाज़ अमृतसर छोड़ चुक्का था और हम बादलों के ऊपर उड़ रहे थे. कुलवंत मुरझाई सी लग रही थी
Read Moreचंडीगढ़ का सफ़र बहुत अच्छा रहा था । घर आ कर एक दो दिन घर में ही रहे। मुहल्ले की
Read More13 अप्रैल को मेरे मामा जी और सारा परिवार आ गिया था , कुछ देर बाद मासी जी और उन
Read Moreकुलवंत से मिल कर ऐसा महसूस हो रहा था कि अब तक मैं अधूरा ही था और अब कोई मेरा
Read Moreबदामी रंग का पयजामा सूट जो मैंने मार्क्स ऐंड स्पैंसर से लिया था पहन कर मैं बिस्तर में लेट गिया
Read Moreकाबल एअरपोर्ट पर जब हम लैंड हुए तो देखा इर्द गिर्द सभी तरफ पहाड़ ही पहाड़ थे। यह पहाड़ तो
Read Moreदिसंबर 1966 में मुझे PSV लाइसैंस मिल गिया था और मेरे साथ रोज़ रोज़ नए नए कंडक्टर आते थे। कई
Read Moreएक दिन हमारे घर के सिटिंग रूम की अंगीठी में कोएले जल रहे थे और कमरा बहुत गर्म लग रहा
Read Moreबहादर और लड्डा यानी बहादर का छोटा भाई हरमिंदर कभी कभी शनिवार या रविवार को आते ही रहते थे. क्यूंकि
Read Moreपहला दिन हमारा कामयाब रहा था. बस को चलाने का कुछ आइडिया हो गिया था. दुसरे दिन मैंने डिपो से
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