संस्मरण

मेरी कहानी 84

एक दिन हमारे घर के सिटिंग रूम की अंगीठी में कोएले जल रहे थे और कमरा बहुत गर्म लग रहा था। गियानी जी रोज़ की तरह fire place (अंगीठी ) के आगे बैठे गार्डियन पेपर पड़ रहे थे। उस दिन गियानी जी ने रात 9 वजे काम पर जाना था। मैंने भी 3 वजे जाना था। मैं भी अंगीठी के पास बैठ गिया और एक मैगज़ीन जिस का नाम प्रीत लड़ी था ,पड़ने लगा। यह मैगज़ीन गुरबक्स सिंह जो गुरबक्स सिंह प्रीतलड़ी के नाम से जाने जाते थे ,निकालते थे। गुरबक्स सिंह के विचारों से मैं बहुत परभावत था और गियानी जी भी गुरबक्स सिंह के विचारों को सराहते थे। गुरबक्स सिंह काफी पड़े लिखे थे और अमरीका में इन्ज्नीअर थे लेकिन कुछ समय बाद इंडिया आ गए थे और यह प्रीतलड़ी मैगज़ीन निकाला था। यह कुछ कमुनिस्ट विचारों के थे।

जब से मैं इंगलैंड आया था गियानी जी और मैं इसी तरह बैठ कर बातें किया करते थे। जब मैं पेपर लेता था तो पहले इंडिया की कोई खबर ढूंढ़ता था ,अगर होती तो पड़ कर लगता कि पेपर की कीमत वसूल हो गई ,नहीं तो सुर्खिआं देख कर पेपर को बंद कर देता था लेकिन गियानी जी पूरा नहीं तो आधा पेपर तो जरूर पड़ते थे और मुझे आवाज़ देते ,” गुरमेल इधर आ, यह खबर देख” ,फिर वोह सारी खबर पड़ते और उस पर बातें करते रहते । वोह समय ही ऐसा था कि ना तो इंडिया का कोई रेडिओ होता था ना ही कोई इंडिया का अखबार प्राप्त होता था । इंडिया से यह ही एक मैगज़ीन मंगवाते थे जो एक महीने बाद बाई सी आता था जब तक खबर भी पुरानी हो जाती थी । कभी कभी थोह्ड़ी बहुत खबर इंडिया की जो मिलती थी वोह सिर्फ डेली टैलीग्राफ ,गार्डियन या दी टाइम्ज़ में मिलती थी।

1962 में जब मैं आया था तो कुछ महीनों बाद ही चीन ने भारत पर हमला कर दिया था। ख़बरों के लिए यहां के अखबारों पर ही हम निर्भर थे। वार फंड के लिए लोग दिल खोल कर पैसे दे रहे थे। बहुत लोगों ने अपनी तन्खुआहों के पैकट बगैर खोले ही दान में दे दिए थे। देश के लिए कुछ लोग कह रहे थे कि पे पैकेट खोलना ही हराम है. इतना जोश था लोगों में। यह सारा पैसा इंडियन हाई कमीशन फंड में जा रहा था। यहां के पेपर पढ़ पढ़ कर एक दूसरे को सुनाते। चौ इन्लाई को गालिआं देते कि उस ने भारत जैसे दोस्त की पीठ में छुरा घोंप दिया था.

जब शान्ति होती है तो लोग दुकानों पर सब्जीआं भी अच्छी अच्छी ढून्ढ कर खरीदते हैं लेकिन जब लड़ाई होती है तो लोग गली सड़ी भी खरीद लेते हैं। यही बात उस समय यहां हुई ,इंडिया से कुछ मिलिट्री के ऑफिसर यहां मिलिट्री का सामान खरीदने आये थे क्योंकि इंडिया के पास उस वक्त मिलिट्री का सामान खत्म होने को था। इस का कारण यह ही था कि नेहरू हकूमत ने डिफैंस पर कोई धियान ही नहीं दिया था , शायद वोह चीन पर भरोसा कर के बैठे थे कि चीन तो भारत का दोस्त है। यहां डोनिंगटन में उस वक्त एक CENTRAL ORDINANCE DEPOT होता था जिस को COD बोलते थे। एक दफा मैं भी वहां काम ढूंढने गिया था लेकिन तन्खुआह बहुत कम थी इस लिए मैंने काम लिया नहीं था ,सिर्फ इंटरवीऊ दे कर और तन्खुआह सुन कर ही वापस आ गिया था। इस डैपो में मिलिट्री का सामान था जो सैकंड वर्ल्ड वार का बचा हुआ था। सुना था ,इंडिया के मिलिट्री अफसर सारा सामान खरीद कर ले गए थे। इन का बचा खुचा सारा सामान विक गिया था।

1962 के बाद ही इंडिया ने डिफेंस पर धियान देना शुरू किया था। यह भी अच्छा ही हुआ क्योंकि तीन साल बाद 1965 में इंडिया की लड़ाई पाकिस्तान से शुरू हो गई. उस वक्त हमारे परधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी थे जिन को अँगरेज़ little sparrow बोलते थे क्योंकि वोह बहुत छोटे थे । मुझे याद है जब शास्त्री जी ने लड़ाई शुरू होने से पहले इंडिया टीवी पर बोला था ,” our cities may be bombed “. उसी वक्त गियानी जी ने बोला था ,” अब पाकिस्तान के साथ घमसान का युद्ध होगा “. और यह बात सही हुई थी। इस लड़ाई में हमारे बहुत जवान मारे गए थे लेकिन सुना था ,पंजाब में औरतें सड़कों पर खाने की चीज़ें ले कर जगह जगह खड़ी थीं और हमारे जवानों को जबरदस्ती खिला रही थीं, यहां अब भी हमारे लोग पैसे इकठे कर रहे थे ,लोगों में बहुत जोश था।

यहां का प्रैस पाकिस्तान की ज़्यादा स्पोर्ट कर रहा था क्योंकि उस वक्त पाकिस्तान, अमरीका और इंगलैंड का दोस्त हुआ करता था। इस का कारण यह था कि एक तरफ तो इंडिया की पॉलिसी नौन अलाइनमेंट की थी और दुसरी तरफ इंडिया की दोस्ती रूस के साथ थी जिस के साथ अमरीका और उस के साथी देशों से कोल्ड वार चल रही थी। लंदन में हमारे लोगों ने मुजाहरे भी किये थे जिस के बैनरों पर लिखा हुआ था “STOP BRITISH PROPAGANDA “.

कुछ देर बाद गियानी जी मुझ को बोले ,”गुरमेल ! जसवंत का पासपोर्ट बन कर आ गिया है और तुम्हारा इंडिया जाने का कब इरादा है ?”. मैंने कहा , “गियानी जी ! मैं फरबरी के आखिर या मार्च के शुरू में जाना चाहता हूँ क्योंकि जब तक इंडिया में गर्मी शुरू हो जायेगी।” गियानी जी बोले ,”जब भी जाना हो अपनी और जसवंत की सीट पक्की करा लेना।” मैंने कहा “गियानी जी , मैं सोच रहा हूँ कि हम AIR AFGAAN में ट्रैवल करें क्योंकि एक तो यह अमृतसर जाती है दूसरे इस में किराया भी बहुत कम है।” गियानी जी बोले ,”जैसा भी करना हो मुझे बता के पैसे ले जाना।” इस के बाद गियानी जी गार्डियन में छपे एक आर्टिकल के बारे में बातें करने लगे जिस में पाकिस्तान के जैन्रल अजूब खान और kristeen keelar की कहानी लिखी हुई थी।

क्रिस्टीन कीलर की कहानी कभी एक बहुत बड़ा स्कैंडल हुआ करती थी और आखर में इस को जेल हो गई थी, कुछ ही साल हुए इस की मृत्यु हो चुक्की है । क्रिस्टीन कीलर के संबंध बहुत से मिनिस्टरों के साथ थे यहां तक कि एक प्रसिद्ध मिनिस्टर perfumo के साथ भी थे। एक आदमी stevan Ward ने तो आतम हत्या कर ली थी और आज के पेपर में अजूब खान और क्रिस्टीन कीलर के संबंधों की भी बात लिखी हुई थी लेकिन अजूब खान ने अपनी सफाई में कहा था कि क्रिस्टीन कीलर के साथ उस के कोई संबंध नहीं थे ,वोह तो सिर्फ होटल में जब क्रिस्टीन कीलर स्विमिंग पूल में नहा रही थी तो वोह उस को सिर्फ देख ही रहा था। यह केस कई महीने कोर्ट में चला था क्योंकि इस में गौरमेंट के कई सीक्रेट्स भी इन्वौल्व थे।

गियानी जी ने सारी खबर पड़ कर मुझे सुनाई और बातें होने लगी पिछले साल हुई लड़ाई की जिस में भारत की जीत हुई थी और पाकिस्तान का बहुत नुक्सान हुआ था। जब ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री जी और अजूब खान के दरम्यिान समझौता हुआ था तो लाल बहादुर शास्त्री जी को हार्ट अटैक हुआ था और चल वसे थे। सभी बोल रहे थे कि इस में कोई साजश थी। शाश्त्री जी का शरीर बड़ी इज़त के साथ भारत लाया गिया था और सारे देश में शोक मनाया गिया था। एक आदमी इंडिया से आता हुआ लड़ाई के दिनों का एक अंग्रेजी का अखबार जो शायद टर्बिऊन था , लाया था जिस में एक कार्टून था जिस में एक बॉक्सिंग रिंग था ,जिस के एक कोने में शास्त्री जी बॉक्सिंग गल्व और निक्कर पहने खड़े थे और दूसरे कोने में अजूब खान ग्लव्व पहने खड़ा था। एक कोने में रशियन कैमरा मैंन खड़ा शास्त्री जी की फोटो ले रहा था और दूसरे कोने में अमेरिकन कैमरा मैन खड़ा अजूब खान की फोटो ले रहा था।

कुछ देर बाद डोर बैल हुई और मैंने दरवाज़ा खोला। बाहर एक आदमी खड़ा था जिस को मैंने पहले भी देखा हुआ था और यह गियानी जी के गाँव का था। भीतर आते ही गियानी जी को बोला ,” ओए गिआनीआं मैं भी इंडिया से एक सुगात सी ले आया हूँ “. किया ?” गियानी जी ने पुछा। ” ओए मैं भी इंडिया से विवाह करके एक कुड़ी ले आया हूँ ,ओए गियानीआं ! बहुत कमजोर है ,घर वालों ने भूखी मार दी ,मैंने आते ही दस शिलिंग का कुकड़ ला कर दिया और कहा ,खाह और तगड़ी हो ” गियानी जी हंसने लगे और मुझे भी उस की बातों पे हंसी आ गई। एक दो दफा इस आदमी को मैंने देखा हुआ था क्योंकि यह अक्सर गियानी जी से फ़ार्म भरवाने के लिए आया करता था। यह आदमी एक अनपढ़ गंवार और किया किया लिखूं मेरे पास शब्द नहीं हैं। 45 46 का होगा और इंडिया से किसी गरीब की 19 20 साल की लड़की से शादी करके ले आया था।

जब यह शख्स चला गिया तो गियानी जी बोलने लगे ,” लो !यह इस मासूम सी गाये जैसी लड़की को सुगात समझता है “. थोह्ड़ा सा इतहास जसवंत ने मुझे इस खानदान के बारे में पहले ही बता दिया हुआ था। यह आठ भाई थे और इन की माँ को गाँव के लोग आठ पुती कहते थे। इंडिया में इन सभी भाईओं की शादी नहीं हो सकी थी क्योंकि बहुत गरीब घर था इनका और कोई जमींन जयदाद भी नहीं थी, किसानों की जमींन ना हो तो उन की शादी असंभव हो जाती थी । भाग्य से एक बड़ा भाई यहां आ गिया था और उस ने अपने तीन और भाईओं को भी यहां बुला लिया था। सब से बड़ा भाई जब यहां आया था तो वोह कौलकास्ट फाऊंडरी में काम पर लग गिया था। यह शरीर का बहुत तगड़ा था और इस फाऊंडरी में काम भी बहुत भारी थे और पैसे भी अच्छे थे। इसी लिए कुछ ही समय में इस ने अपना घर ले लिया था।

50 साल की उम्र में वोह इंडिया से 25 26 साल की लड़की से शादी करा कर ले आया था। इवज़ में इस ने अपनी बीवी के भाई और उस के बाप को यहां बुला लिया था। इन सभी भाईओं के बच्चे हुए और पड़ लिख कर बाद में अच्छी नौकरिओं पर लग गए। खुद तो यह भाई कब के यह संसार छोड़ चुक्के हैं लेकिन इन की बीविओं के बारे में मुझे कुछ नहीं पता कि वोह हैं या नहीं लेकिन मैं उन को झुक कर नमस्कार करता हूँ कि उन्होंने अपने पतिओं से उम्र में इतनी छोटी होने के बावजूद बड़ी इज़त के साथ अपने अपने घरों को चलाया था।
गांवों में इस तरह की शादियां होती ही रहती थीं। लोग हंस कर बातें किया करते थे कि जवान लड़की को बूढ़े के संग विदा कर दिया। जाग्रुप्ता के लिए ऐसी शादिओं के रिकार्ड भी बने हुए थे जो अक्सर पहले ग्रामोफोन पर और बाद में लाऊड स्पीकरों पर सुनते रहते थे।

गरीब लोग इंगलैंड के लालच में बेटिओं की शादी बूढ़ों से विवाह देते थे, या यूं कहें कि अपनी बेटिओं की बलि दे देते थे ताकि घर का कोई और सदस्य बाहर जा सके । यह जो आदमी अब आया था ,पीठ पीछे इस को कुल्हाड़ा बोलते थे क्योंकि इस की बोल चाल ही कुल्हाड़े जैसी रफ थी। जब वोह चले गिया तो गियानी जी मुझ से बातें करने लगे कि इन लड़किओं की कितनी बदकिस्मती थी कि अपने अरमानों को दबा कर बूढ़ों के साथ ज़िंदगी बिता रही थीं। गियानी जी ने बहुत कुछ बोला था जो मुझे याद नहीं लेकिन अर्थ यही थे कि हमारी गाये जैसी लड़किओं के साथ ज़ुलम हो रहा था। ऐसी लड़किआं उस वक्त बहुत थीं ,एक तो अभी भी हमारे नज़दीक रहती है लेकिन अब वोह मुझ से भी बूढ़ी हो चुकी है और मुझ से भी दो साल बड़ी है। कई लड़किआं ऐसी भी थीं जिन्होंने बूढ़े पतिओं की परवाह करनी छोड़ दी थी और उन के बारे में बहुत बातें होती रहती थीं। अब तो बहुत लोग इस दुनिआ से जा चुक्के हैं और उन के पोते पोतीआं भी बड़े हो चुक्के हैं ,लोग सब कुछ उन के बारे में भूल चुक्के हैं और यह बातें अब एक इतहास बन कर रह गई हैं।

सिटिंग रूम में मैं और गियानी जी इस तरह बातें करते ही रहते थे। जसवंत को ना तो कुछ आता था और ना ही उस को इन बातों में कोई दिलचस्पी होती थी। जसवंत गियानी जी को भाईया कह कर बुलाता था जब कि मैं जब पिता जी यहां थे तो उन को भाईया जी कह कर बुलाता था। एक दफा गियानी जी किसी बात पर जसवंत से गुस्से हो गए और जसवंत को बोलने लगे ,” तुम्हें गुरमेल से सीखना चाहिए जो हमेशा अपने डैडी को भाईया जी कह कर बुलाता है ,लेकिन तू हमेशा मुझे अनपढ़ों की तरह भाईया कह कर बुलाते हो “. जसवंत को शर्म सी महसूस हुई और गियानी जी को भाईया जी कह कर बुलाने लगा लेकिन उस का बोलना ऐसा था जैसे एक औरत अपने पति को बुलाती है। जसवंत गियानी जी को बोलता ,” जी !तुम अब रोटी खा लो” ,कई दफा बोलता ,” जी ! आप दूध पी लो “.

एक दिन गियानी जी हंस पड़े और बोले ,” जिस इंसान ने कभी अच्छा लफ़ज़ ना बोला हो ,वोह अचानक अच्छा लफ़ज़ बोलना शुरू कर दे तो उस के मुंह से अच्छा लफ़ज़ अच्छा नहीं लगता ,तू मुझे अकेला भाईया ही कह लिया कर “. मेरी और जसवंत की दोस्ती एक इलग्ग तरह की होती थी। हर शनिवार को मैं उस को मीट बना के देता था। पहले पहल जब मैं इंडिया से आया नहीं था तो गियानी जी जसवंत को मीट बना कर देते थे लेकिन जब मेरे पिता जी के इंडिया जाने के बाद जसवंत मेरा बना मीट खाता था तो उस को बहुत मज़ा आता था। कुछ समय बाद जसवंत ने मुझ से कह ही दिया कि “गुरमेल ! तू मेरे लिए मीट बना दिया कर और मैं सारे घर की सफाई कर दिया करूँगा”।

बस यह हमारा रूटीन ही बन गिया था, मैं उस का मीट बना देता और जसवंत सारे घर में बकेट में गर्म पानी और उस में सोडा मिला कर मौप से फ्लोर साफ़ कर देता और गैस कुकर भी साफ़ कर देता था। गियानी जी ना तो मीट खाते थे और ना ही बीअर पीते थे लेकिन जसवंत को खाने पीने से मना नहीं करते थे क्योंकि इतना सख्त काम करके सभी लड़के हफ्ते के आखर में मस्ती किया करते थे। गियानी जी कहा करते थे कि इंग्लैण्ड की तो यह जीवन शैली ही है ,फिर इस में बड़ी बात किया थी। इंडिया की तो बात ही इलग्ग थी ,क्योंकि वहां तो शराब पी कर लोग गलिओं में गिरते थे, यहां तो गोरे लोग गाते भी हैं , बच्चे भी साथ चले जाते हैं और चिल्ड्रन रूम में स्नूकर खेलते रहते हैं। कुछ भी हो सभी ने बहुत सख्त काम किया लेकिन जीवन शैली ही ऐसी थी कि हँसते हँसते अपनी जवानीआं इंगलैंड को अर्पण कर दीं।

चलता . . . . . . . . . .
 

6 thoughts on “मेरी कहानी 84

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी किस्त भाईसाहब। पढकर अच्छा लगा कि वहाँ अपने देश के प्रति इतनी जागरूकता है। बीबीसी हमेशा भारत के विरुद्ध पक्षपातपूर्ण ख़बरें देता है। फिर भी वह सच्ची ख़बरें ही देता है। आपातकाल के दिनों में हम लोग उसकी ख़बरों पर ही भरोसा करते थे।

  • Man Mohan Kumar Arya

    नमस्ते आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। पूरी क़िस्त पढ़ी। अच्छी लगी। पचास वर्षों से भी अधिक पुरानी बाते आपको स्मरण है, यह एक अजूबा ही लगता है। सन १९६२ में जब चीन ने आक्रमण किया था तब मैं १० वर्ष का था और १९६५ में तेरह वर्ष का। बहुत काम बाते स्मरण हैं। इतिहास शिक्षा लेने के लिए होता है। हम पाकिस्तान और चीन तथा वहां के लोगो पर विश्वास नहीं कर सकते। उन्हें जब अवसर मिलेगा वह धोखा देंगें. हमें संगठित होना होगा और शक्ति में दूसरों के समान वा उनसे अधिक होना होगा, तभी हम जीवित रह सकेंगे। आज की क़िस्त के लिए धन्यवाद।

    • मनमोहन भाई , ज़िआदा तो मैं लिख नहीं सका लेकिन मुझे याद है उस समय यहाँ इतना जोश था कि बताना मुश्किल है . १९६२ में जो हम बीबीसी पर देखा करते थे उस को देख कर ही रोना आता था कि हमारी फ़ौज की इतनी बुरी हालत थी कि चीनी भारती फ़ौज को पहाड़ों के नीचे धकेलते ही चले गए थे .चीनी तूफ़ान की तरह आये थे और जब उन का मकसद पूरा हो गिया तो वोह पीछे चले गए .इस के बाद ही कुछ समय बाद नेहरू जी को हार्ट अटैक हुआ था और यह दुनीआं छोड़ गए थे . १९६५ की लड़ाई में तो यहाँ भी हमारे और पाकिस्तानी लोगों के दर्मिआन झगडे हुए थे . इसी तरह १९७१ में तो यहाँ बहुत ही उत्साह होता था ,उस वक्त तो हम ने टीवी पर बहुत कुछ देखा था . आप की बात सच है कि चीनी और पाकिस्तानी लोगों पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता ,यह मीठे बन कर बाद में पीठ में छुरा घोंप देते हैं .

      • Man Mohan Kumar Arya

        नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। सादर।

    • विजय कुमार सिंघल

      आपका कहना बिल्कुल सत्य है, मान्यवर ! पाकिस्तान का तो जन्म ही भारत और हिन्दू विद्वेष से हुआ है। उससे मित्रता की आशा करना ही व्यर्थ है। और चीन तो दुनिया का सबसे ज्यादा कमीना देश है। इसका एक शब्द भी विश्वास करने लायक नहीं है। इसका पूरा इतिहास ही पड़ोसी देशों की पीठ में छुरा भोंकने की घटनाओं से भरा हुआ है। इसके साथ व्यापार करना भी उचित नहीं।

      • Man Mohan Kumar Arya

        मैं आपके विचारों से पूर्णतया सहमत हूँ। इसके बावजूद इन देशों से वार्ता करना और सम्बन्ध सामान्य बनाने का प्रयास करना हमारी सरकार की मजबूरी है। सरकार का यह लक्ष्य होना चाहिय कि देश इतना मजबूत हो कि आपात्काल में हम इन दोनों देशों का मुकाबला कर सकें और ताकत में इनसे कम सिद्ध न हों। नमस्ते एवं सादर आदरणीय श्री विजय जी।

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