कुण्डली/छंद

कुण्डली/छंदपद्य साहित्य

लगता मुझे है अब,बहकने वाले हैं (मनहरण घनाक्षरी छन्द)

चाँदनी चमक लिए,चाहने की चाह लिए दिल में चाहत भरा,क्यों लिये चल रहीं। बाल तेरे काले काले,चाल तेरे हैं निराले

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कुण्डली/छंद

कुंडलियाँ छंद

अपना भारत देश जो,लगे सुरक्षित आज। हर पल सेवारत् रहें,दृढ़ता से जांबाज। दृढ़ता से जांबाज,रहें जल-थल-अंबर में। तब जाकर सुख-चैन,प्राप्त

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