चलते चलते…
भाव चुराते ताव चुराते साहित्य समुंदर पार करन को वो शब्दों की नाव चुराते हाथ- सफाई ऐसी करते अच्छे-अच्छे गच्चा खाते सूरज-चंदा छिपे ओट
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Read Moreखून खौल उठता है उस नन्हीं गुड़िया की हालत पर कैसे बाँट रहे कुकर्म को धर्म जाति की चैखट पर
Read Moreराष्ट्र में अधिकांश भ्रष्टाचार फैला जा रहा है। नित्य ही नैतिकता का नाश होता जा रहा है।। मानवों में बढ़
Read Moreतुम हर पल ढूंढकर देख लेना. मैं तुम्हारी यादों की बस्ती में मिलूँगी. कोई जब खिलखिला कर हँसे. उसकी उस
Read Moreपढ़ते-पढ़ते सो गया, भर आँखों में नींद। शिर पर कितना भार है, लगता बालक बींद॥ लगता बालक बींद, उठाए पुस्तक
Read Moreघर से ‘कुछ नहीं’ पीकर आने की कसम खाकर जाने वाले प्रेमपूर्वक ‘कुछ नहीं’ पीकर घर आते हैं और घर
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