काव्यमय कथा-17 : लालच बुरी बला है
हड्डी एक बड़ी ले मुंह में, कुत्ता एक बहुत हर्षाया, कहीं अकेले में खाने की, मन में ठान नदी पर
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Read Moreएक शिकारी एक पेड़ पर, कबूतरों को देख लुभाया, झटपट दाने डाल वहीं पर, उसने अपना जाल बिछाया. जाते देख
Read Moreहाथी एक रोज़ जाता था, पास एक दर्ज़ी के, दर्ज़ी उसको रोटी देता, हाथी करता ”नमस्ते”. एक बार दर्ज़ी ने
Read Moreभेड़ चराने वाला रामू, करता था मनमानी, एक बार मज़ाक करने की, उसने मन में ठानी. ”आया भेड़िया मुझे बचाओ”,
Read Moreगीदड़ तीन देख हाथी को, खाने को थे ललचाए, बिना किसी तरकीब के हाथी, बस में कैसे आ पाए? गीदड़
Read Moreकरते-करते सैर लोमड़ी, एक बाग में जा पहुंची, अंगूरों के गुच्छों वाली, बेलें देखीं कुछ ऊंची. अंगूरों को देख लोमड़ी,
Read Moreएक शेर जंगल में सोया, मीठे सपने देख रहा, चूहा एक शेर के ऊपर, उछल रहा और कूद रहा. पंजे
Read Moreएक दिवस खरगोश महाशय, बोले कछुए राम से, ”बड़े सुस्त तुम कछुए भाई, डरते दौड़ लगाने से. कछुआ बोला, ”डरना
Read Moreएक गुलाम भागकर पहुंचा, एक घने जंगल में, कोई शेर कराह रहा था, जाने क्या था पग में! पैर उठा
Read Moreरोटी एक मिली कौए को, मन में बहुत-बहुत हर्षाया, उसे देखकर एक लोमड़ी, का भी मन था ललचाया. ”कौए भाई,
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