कविता

समझ न पाए आप मुझे

जो भी हुआ कोई खेद नहीं, बस इतना है संताप मुझे 
आप ने जीवन को समझा, पर समझ न पाए आप मुझे 

हर कहा आप का सच माना, औरों की बात न मान सका 
आँखों की भाषा पढता रहा, ह्रदय का सच न जान सका 
मात्र वही तो सत्य नहीं, जिसको बस तुमने ही स्वीकारा 
मात्र वही सारांश नहीं, जिस सत्य के सन्मुख जीवन हारा
सजा मिली है जो भी हमें, स्वीकार है हर इन्साफ मुझे
पर खता तो मेरी बतला दो, चाहे मत करना माफ़ मुझे
आप ने जीवन को समझा, पर समझ न पाए आप मुझे

एक बार तो कह देते प्रिय, प्रेम हमारा सत्य नहीं है
मात्र दया की है मुझपर, प्रिय मेरा कोई कृत्य नहीं है
जो भी हम से नेह तुम्हें है, वो बस एक दिखावा है
भूल से मुझे चुना जब से, तब से ख़ुद पर पछतावा है
आप सत्य तो कहते मुझसे, ना दे पाते यदि इंसाफ मुझे
पर खता तो मेरी बतला दो, चाहे मत करना माफ़ मुझे
आप ने जीवन को समझा पर समझ न पाए आप मुझे

मुझे बता दो क्या मैंने, प्रियवर तुमको ना स्वीकारा
क्या तुमको ना प्यार किया, क्या ना छोड़ा जग सारा
क्या भूत तुम्हारा कभी प्रिये, मेरे प्रेम सम्मुख आया
क्या मैंने वो सच ना माना, जो भी तुमनें मुझे बताया
फिर क्या ऐसी बात हुई जो जीवन भर का प्रलाप मुझे
बस खता तो मेरी बतला दो, चाहे मत करना माफ़ मुझे
आप ने जीवन को समझा पर समझ न पाए आप मुझे

जी लूँगा मैं नहीं मरूँगा, पर बिना तुम्हारे नहीं तरूँगा
जब भी प्रेम वर्णन होगा, सच में प्रिय मैं बहुत डरूँगा
अपनी व्यथा मिटा लूँगा मैं, सत्य को भी अपना लूँगा मैं
तुम्हें कष्ट ना हो प्रियवर, असुंअन की धार छुपा लूँगा मैं
माना प्रेम को जीवन प्रिय और मिला है प्रेम विलाप मुझे
पर खता तो मेरी बतला दो, चाहे मत करना माफ़ मुझे
आप ने जीवन को समझा पर समझ न पाए आप मुझे

जो भी हुआ कोई खेद नहीं, बस इतना है संताप मुझे
आप ने जीवन को समझा, पर समझ न पाए आप मुझे

अभिवृत

2 thoughts on “समझ न पाए आप मुझे

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता है , बस यही तो पियार में कठनाई है , जब टूटती है तो कोई वजह नहीं बताता .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा गीत.

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