लघुकथा

अपनी -अपनी पसंद

शादी के बाद दोनों बहनों का आपस मे मिलना ही नहीं हुआ | आज बीस बरस बाद जब दोनों मिली तो दोनों की आँखों में ख़ुशी के आंसू थे | फिर छोटी बहन ने आंसू पोछते हुए कहा ” अपने बच्चो के बारे में तो कुछ बता |” ये सुनते ही बड़ी बहन को गुस्सा आया | छोटी ने कहा ” गुस्सा क्यों होती हो मैंने तो केवल ये जानना चाहा कि वो कहाँ है और कितने है ?”

बड़ी बहन ने कहा, “नाम ही मत लो उनका मेरे लडके और लडकी दोनों ने अपनी- अपनी पसंद की शादी की और अब दोनों भुगत रहे है | मै अब बिना बच्चो की हो गयी वापस |” दोनों बहने वापस रोने लगी |

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

6 thoughts on “अपनी -अपनी पसंद

    • शान्ति पुरोहित

      धन्यवाद.

    • शान्ति पुरोहित

      बहुत बहुत धन्यवाद, शशि जी.

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी लघुकथा, बहिन जी. यही आधुनिक संस्कृति की वास्तविकता है. ‘प्यार का भूत’ उतर जाने पर जिन्दगी बर्बाद हो जाती है. वे ही विवाह सफल रहते हैं जो माता पिता की स्वीकृति और सहयोग से तय किये जाते हैं.

    • शान्ति पुरोहित

      धन्यवाद, भाई.

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