कविता

मुक्तक

कल की बात है ====
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आलता लगाती सांझ तरुणी निकली
झिर्री से झाँकती तारों की टोली निकली
सूर्य सूर्यमुखी अपनी दिशा बदलते रहे
रात रानी नशीली खिलखिलाती निकली

विभा

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

2 thoughts on “मुक्तक

  • जगदीश सोनकर

    मुक्तक समझ में कम आया है.

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा मुक्तक.

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