कविताहास्य व्यंग्य

हास्य रचना – टीवी की जय हो

नहीं रहे जब घर में बीवी
काम बड़ा आता है टीवी
दुनियाभर की बात बताए
तरह-तरह से मन बहलाए
वक्त बिताता, साथ निभाता
जो बोलो झट से ले आता
देख इसे नैना हर्षाते
पलभर को सब गम मिट जाते
चंदा, तारों से मिलवा दे
चिप्स, कुरकुरे, स्नैक्स खिला दे
जरा कूल तो जरा हॉट है
मस्त-मस्त ये जैकपॉट है
चले अदा से, अलस भगा दे
सारी-सारी रात जगा दे
कभी चिढ़ाता, कभी सताता
सुखद ढंग से कभी पकाता
इसकी महिमा कितनी गाऊँ
हुलस-हुलस बस शीश नवाऊँ
जब भी तन्हाई का भय हो
बोलो जी टीवी की जय हो

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन

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