सामाजिक

मैं तो साहब बन गया, जैसे गोरा कोई लन्दन का…

साहब बाबू अंगरेजों की नक़ल करते हुए हमने कई पाश्चात्य परम्पराओं को बिना सोचें समझें ज्यों का त्यों अपना लिया है I टाई भी उनमें से एक हैं I स्मार्ट, आकर्षक, सूटेड – बूटेड, आत्मविश्वास से भरा हुआ, सुन्दर, आधुनिक आदि आदि दिखने की होड़ में हमने अपने ही गले में इस आफत के फंदे को स्वर्णाभूषण मानकर सजा लिया है I

और तो और देशभर के सारे कथित प्रतिष्ठित पब्लिक स्कूलों तथा गांव गांव के स्कूलों के संचालकों ने भी एक कदम आगे बढाते हुए अपने संस्थान को अलग पहचान के चक्कर में नन्हें – नन्हें, कोमल – कोमल अंगों वाले बच्चों के मुलायम गले में विशिष्ट डिजाइन की टाई का शिकंजा कस डाला है I अब तो इस गले में फन्दा बांधने की निर्विरोध प्रथा ने मानो राष्ट्रव्यापी आकार ले लिया है I विवाह के पावन बंधन में बंधने को आतुर aअधिकांश दूल्हे टाई नामक अवैज्ञानिक बंधन को गौरव के साथ गले में धारण करना (फंसाना) पसंद करते हैं I एक बात का जिक्र प्रासंगिक होगा कि जब लेखक ने सन 1984 में अपने विवाह में अनेक मित्रों और सगे सम्बन्धियों के दुराग्रह के बाद भी इसे धारण नहीं किया, तो उसे सभी की नाराजगी का शिकार होना पड़ा था I

necktie

जी हां, टाई बनाती है, कमअक्ल और अन्धा भी

नेट पर इस गललंगोट (टाई) को धारण करने से मानव शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को जाहिर करने में सक्षम अनेक शोध आलेख सहजता से उपलब्ध हैं, उनके शीर्षक ही सब कुछ कह देते है यानी सेल्फ एक्सप्लेनिंग हैं I कुछ आलेखों के शीर्षक आपकी सेवा में सादर प्रस्तुत हैं – “वियरिंग ए नेकटाई मेक यू स्टूपिड”, “वियरिंग ए नेकटाई मेक यू ब्लाइंड”, “वियरिंग ए टाई रेस्ट्रिक्ट्स ब्लड फ्लो टू द ब्रेन”, “वियरिंग ए टाई टू टाइट मे लीड टू ब्रेन स्ट्रोक”] मेन वेयर इन ट्रबल विथइन थ्री मिनट्स ऑफ़ पूटिंग ऑन ए टाइटली टाइड नेकटाई”] ^टाइट टाइज कूड मेक यू ब्लाइंड”, “डज वियरिंग नेकटाइज कॉज ग्लाकोमा”, “डोन्ट लेट टाई, टाई यू”, और” यूनिफार्म टाई डेंजर्स फॉर पोलिस” I विश्वास कीजिये, ये तमाम जुमले किसी भारतीय पुरातनपंथी और दकियानूसी संत के मुख से निकले धार्मिक फतवे नहीं हैं, बल्कि ये विशुद्ध रूप से विश्वसनीय वैज्ञानिक अध्ययनों के निष्कर्ष हैं I कथित कुप्रचारित भगवा मानसिकता से इनका दूर दूर का लेना नहीं है I

आखिर क्यों टाई सेहत के लिए अच्छी नहीं है ?

वैज्ञानिकों के उपरोक्त अध्ययनों की पृष्ठभूमि जानेंगे तो रहस्य स्वत: उजागर हो सकेगा कि आखिर क्यों टाई व्यक्ति को अंधा, ग्लाकोमा का रोगी, कमअक्ल, भोंदू, तनावग्रस्त या उच्च रक्तचाप का रोगी बना सकती है I वास्तव में हमारी गर्दन यानी गला, सिर और धड़ को जोड़ने वाला महत्वपूर्ण अंग है I इस अंग में श्वासनली (ट्रेकिया), अन्नवाहिनी (इसोफेगस), साथ ही हृदय से मस्तिष्क तक शुद्ध रक्त ले जाने वाली धमनियां (आर्टरीज) तथा मस्तिष्क से कार्बन डाईऑक्साइड बहुल (अशुद्ध) रक्त हृदय तक लाने वाली शिराएं (वेंस) भी गर्दन से होकर गुजरती हैं I चूंकि हमारे मस्तिष्क में शरीर की समस्त क्रियाओं को नियन्त्रित करने वाले केन्द्र स्थित होते हैं, इसलिए उनसे सम्बन्धित सूचना लाने और ले जाने वाली तंत्रिकाएं (नर्व्स) भी गले से होकर गुजरती हैं I एक विशेष बात यह भी है कि हमारे शरीर के रक्तचाप को नियन्त्रित करने में एक सीमा तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले केन्द्र (रिसेप्टर्स), गले से गुजरने वाली कैरोटिड नामक धमनी (आर्टरी) में स्थित होते हैं, जो रक्त के दाब (ब्लडप्रेशर) और रक्त में आक्सीजन एवं कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा में परिवर्तन से प्रभावित होते हैं, जिन्हें दाबसंवेदक या गाहक (बैरोरिसेप्टर) और रसायनसंवेदक या गाहक (कीमोरिसेप्टर) कहते हैं I इसीलिए हृदय और रक्तसंचार तंत्र (कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम) का परीक्षण करते समय दक्ष चिकित्सक ही नहीं बल्कि प्रशिक्षु चिकित्सा विद्यार्थी भी गले के दोनों तरफ स्थित कैरोटिड धमनी का एक साथ परीक्षण करने की भूल नहीं करते हैं, क्योंकि यदि परीक्षण करते समय दोनों कैरोटिड धमनी पर एक साथ ज्यादा दबाव पड़ जाए तो व्यक्ति को चक्कर आ सकते हैं I

क्या क्या गुल खिलाती है, टाई ?

जब व्यक्ति को फांसी लगाई जाती है तो श्वासनली के बन्द (चोक) और क्षतिग्रस्त हो जाने से वह मर जाता है I चिकित्सा विज्ञान के अनुसार मस्तिष्क (शरीर की सभी कोशिकाओं के लिए भी ये अनिवार्य हैं) को स्वस्थ रखने के लिए मुख्य रूप से दो तत्व जरूरी हैं, पहला शुद्ध वायु यानी ऑक्सीजन की उपलब्धता और दूसरा पौष्टिक तत्वों (विशेषरूप से ग्लूकोज) की उपलब्धता I वास्तव में जब प्राणवायु की उपस्थिति में ग्लूकोज का दहन होता है, तब ऊर्जा उत्पन्न होती है और कार्बन डाईऑक्साइड, पानी और अन्य विजातीय रसायन भी उत्पन्न होते हैं I मस्तिष्क की समस्त कोशिकाओं में ग्लूकोज के दहन से निकले इन विजातीय टॉक्सिक पदार्थों को अविलम्ब हटाया जाना जरूरी होता है, इसीलिए रक्त उन्हें तुरंत वहां से लेकर शिराओं के माध्यम से किडनी, फेफड़ों, त्वचा और पाचन तंत्र आदि तक ले जाकर उनका उत्सर्जन सुनिश्चित करता है I मस्तिष्क को तीन से चार मिनट तक ऑक्सीजन नहीं मिले तो ब्रेन डेथ सम्भव है I इसके अतिरिक्त गले में बंधी टाई, अशुद्ध रक्त की ब्रेन से निकासी में भी बाधा डालने लगती है क्योंकि शिराओं में रक्त का दाब लगभग शून्य (जीरो) मिलीमीटर ऑफ़ मर्करी होता है, जिसके चलते गले में थोड़ा – सा भी दबाव रक्त के दिल तक लौटने में बहुत बड़ी बाधा बन जाता है, या बन सकता है और टाई ऐसा कमाल कर सकती है I चूंकि दिल से दिमाग तक रक्त ले जाने वाली धमनियों का औसत दाब (मीन ब्लडप्रेशर) १०० मिलीमीटर ऑफ़ मर्करी होता है, इसलिए शुद्ध रक्त के संचार में बाधा नहीं आती है I इसका यह परिणाम होता है कि विजातीय पदार्थ मस्तिष्क की समस्त क्रियाओं में व्यवधान डालने लगते हैं, स्मरण शक्ति, सोचना-समझना, चिन्तन मनन, विश्लेषण आदि क्रियाओं में मस्तिष्क को ज्यादा परिश्रम करने के लिए विवश होना  पड़ता है I

गले में फांसी की तरह लटकी टाई एक और कमाल दिखाने में सक्षम होती है I वास्तव में जब हम श्वास लेते और छोड़ते हैं तो गले से गुजर रही श्वास नली फैलती और सिकुड़ती है I टाई उसके फैलने – सिकुड़ने की स्वतन्त्रता को भी बाधित करती है, जिसके चलते प्राणवायु की पर्याप्त आपूर्ति बाधित होती है I विश्वभर के अनेक आधुनिक वैज्ञानिक प्राणायाम को शरीर और मस्तिष्क की क्षमता के लिए अच्छा मानते हैं, इसके ठीक विपरीत टाई प्राण – बाधा का काम करती है I

सन २०१० में प्रकाशित स्कॉटलैंड के वैज्ञानिकों की एक रिसर्च के अनुसार टाइट बंधी टाई से मस्तिष्क आघात (ब्रेन स्ट्रोक) हो सकता है, स्कॉटिश स्ट्रोक रिसर्च नेट्वर्क के डायरेक्टर डॉ. मैथ्यू वाल्टर्स ने ग्लासगो यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ़ कार्डियोवैस्कुलर एंड मेडिकल साइंस में किये गए अपने अध्ययन के निष्कर्ष में टाई से मस्तिष्क आघात की सम्भावना को स्थापित किया है I उनके अध्ययन का एक और प्रामाणिक पहलू यह भी था कि मस्तिष्क को पर्याप्त रक्त संचार नहीं मिलने से स्कॉटलैंड में प्रतिवर्ष मस्तिष्क आघात से १२५०० लोग मर जाते है, जो स्कॉटलैंड में सर्वाधिक मृत्यु के प्रमुख तीन कारणों में तीसरा है I

ब्रिटिश जर्नल ऑफ़ आफ्थेल्मोलाजी में प्रकाशित एक अध्यययन के अनुसार टाइट टाई से जुगुलर वेन (मस्तिष्क से अशुद्ध रक्त लाने वाली गले से गुजरने वाली शिरा) संकुचित हो जाती है, जिसके कारण इंट्रा आक्यूलर प्रेशर (आंख के भीतर का दबाव) बढ़ जाता है, जो ग्लाकोमा (अन्धेपन का एक कारण) का कारण हो सकता है I

न्यूयार्क आई एंड इयर इन्फर्मरी के अध्ययन के अनुसार मात्र तीन मिनट के लिए कसी हुई टाई पहनने से आंखों पर बुरा असर पड़ सकता है I एक अन्य अध्ययन के अनुसार टाई पहनने से मस्तिष्क का रक्त प्रवाह कम हो जाता है, जिसके कारण व्यक्ति का रक्तचाप बढ़ जाता है I

एक अध्ययन के चौकाने वाले परिणामों ने डॉक्टरों को टाई से पिण्ड छुड़ाने के लिए विवश कर दिया है, इसके अनुसार डॉक्टरों द्वारा पहनी टाई रोगियों के रोगाणुओं की शरणस्थली बन जाती है, वे रोगाणु स्वयं डॉक्टर और उसके अन्य रोगियों के लिए खतरे की घंटी बन सकते हैं I

यकीन मानिए, जब भी आप किसी विदेशी भाषा को अपने घर में महारानी बनाकर प्रतिष्ठित करेंगे, तो उस देश की परम्पराएं भी आपके भीतर लालसा और लालच बनकर आपके ऊपर सवारी करेगी और आप खुशी खुशी तथा गौरव के साथ उसका बोझ आजीवन ढ़ोते रहेंगे I

One thought on “मैं तो साहब बन गया, जैसे गोरा कोई लन्दन का…

  • विजय कुमार सिंघल

    टाई के बारे में आपने जो लिखा है वह अक्षरशः सत्य है. मैंने खुद टाई पहनते हुए इसके दुष्प्रभावों का अनुभव किया है. इसलिए जैसे ही टाई की आवश्यकता समाप्त हो जाती है, मैं उसे खोलकर जेब में रख लेता हूँ.
    आज के युग में टाई पहनना बहुतों की मजबूरी होती है. जैसे बैंक में उच्च अधिकारी होने के कारण मुझे कई बार टाई पहननी पड़ती है. चाहते हुए भी मैं इससे बच नहीं सकता. लेकिन जब अनिवार्य नहीं होती तो मैं नहीं पहनता.
    ऐसी मजबूरियाँ बहुत से लोगों के साथ हो सकती हैं. जब तक शुद्ध भारतीय वस्त्रों को नहीं अपनाया जायेगा, तब तक इससे मुक्ति पाना संभव नहीं है.

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