लेख

मोहम्मद रफ़ी द ग्रेट

Rafi_splash
लन्दन में कहीं संगीत समारोह हो रहा था, भारतीय गायक अपनी प्रतिभा से लोगों को मंत्रमुग्ध करने में लगे हुए थे, एक मोटा सा गायक था, कद काठी में कुछ ख़ास नहीं, लेकिन चेहरे पर बेहद खूबसूरत मुस्कान, और आवाज में वो रूहानियत कि लोगों के दिलो दिमाग में बस वही जा बसी थी, उसने अपने स्वरों को साधते हुए गाना शुरू किया “ओ दुनिया के रखवाले…सुन दर्द भरे मेरे नाले” स्वरों की तीसरी मंजिल तक पहुंचकर ज्यो ज्यो गीत की लय बढती आवाज आकर सीधा दिल पर लगती थी, कानो में घुलती तो आँखों से आंसू बनकर निकल जाती, उन स्वरों में एक ऐसा दिलकश जादू सा था अपने से बांधे रखता था ,समारोह में एक ऐसा आकर्षण भर आया कि गीत पूरा होते होते लगभग हर शख्स जिसके सीने में दिल था वो आँखें बंद करके मग्न था या तो लगभग रो रहा था, गीत ख़त्म हुआ और लोगों का शोर शुरू हो चूका था… वन्स मोर…वन्स मोर…. और गायक ने फिर वही गीत उसी अंदाज उसी लहजे में शुरू किया, फिर वही रूहानियत हर किसी ने अपने दिलों में महसूस की और गीत ख़त्म होते ही फिर वन्स मोर…वन्स मोर…की आवाजें गूंजने लगीं, ऐसा लगभग छः से सात बार हुआ, अबकी बार संगीतकार एक ही गीत को बजा बजाकर थक गए थे और लोग थे कि वन्स मोर…वन्स मोर… चिल्लाना नहीं छोड़ रहे थे, उन्हें बस तभी चैन मिलता जब गायक अपने दिल की गहराइयों से स्वरों को उठाकर ‘भगवान्…………’ से शुरू करते हुए गाना शुरू करता, लेकिन संगीतकारों ने इस बार बजने से मना कर दिया, गायक एक हारमोनियम उठाकर स्वयं अकेला गीत को स्वर देने लगा और जनता जनार्दन भी उस एक हारमोनियम के साथ उस गीत का आनंद लेने लगी, गायक उसी एक अंदाज में गाता रहा, ना लय टूटती थी, ना स्वर हिलते थे, ना धुन भटकती थी, आखिर मोहम्मद रफ़ी ऐसे ही महान नहीं हुए, वो रात के अंतिम प्रहर तक अपने चाहने वालों की हसरतें पूरी करते रहे!
दिल को छूकर जाने वाली आवाजें बहुत कम पैदा हुयी हैं और उससे भी कम हैं दिल में बस जाने वाली आवाजें, बहुत कम ऐसा हुआ होगा जब आप दिल से कोई गीत सुनकर रोये होंगे, या किसी किसी गाने में दिल से नाच उठने जी किया होगा, रफ़ी की आवाज में वो खासियत थी जिस रंग को गाया, जिस स्वर को छू दिया वो गीत अमर हो गया, इसीलिए जब वो गाते हैं “ज़िन्दगी के सफ़र में अकेले थे हम…” तो हमे अपना अतीत नजर आता है, जब वो गाते हैं “साथी ना कोई मंजिल…” तो हमे अपने अकेलेपन सूनेपन का एहसास होता है, जब यही आवाज किसी भजन को छू लेती है तो उसमे हमारा मन सा रम जाता है, कई कई बार जो अपनी आत्मा में इस बात को स्वीकार करते हैं वो बार बार इन भजनों को दोहरा दोहराकर सुनते हैं, ये उस आवाज का जादू है जो हमारे दिल में समा जाती है, हमे तरंगित कर देती है, हमे छूकर गुजरती है तो हम उसके साथ साथ चलने लगते हैं, जब इस आवाज की पाकीजगी “मन तडपत हरी दर्शन को आज…” जैसे भजन को छू देती है तो मन ईश्वरीय दर्शन को उत्कंठित हो उठता है, इस आवाज का जादू दशको से हमपर छाया हुआ है, लगता ही नहीं रफ़ी साहब हमारे बीच नहीं हैं, उनके गाये गीत आज भी कानो में पड़ते हैं तो एकदम ताजे और नए ही लगते हैं, ‘मधुबन में राधिका नाची…’ ‘मन रे तू काहे ना धीर धरे…’, ‘ये ज़िन्दगी के मेले…’ कुछ एक से बढ़कर एक गीत हैं !
फिल्मो में लोकगीतों के चलन को याद करें तो “मेरे पैरों में घुँघरू बंधा दे…’ ‘नैन लड़ जैहैं….’ जैसे गीत झुमा देने वाले हैं!
रफ़ी ने जिन कलाकारों के लिए गीत गाये उनपर ही उनकी आवाज एकदम फिट बैठ जाती थी, फिर वे कलाकार रफ़ी के अलावा किसी और को अपने गीत नहीं गाने देते थे, कितने ही मनोहर गीतो से सजा है रफ़ी साहब के स्वरों का गुलदस्ता! एक महान गायक की यही पहचान होती है कि उसके संग्रह में हर तरह के गीत हैं, अलग अलग रस अलग अलग भावों का मिलन रफ़ी के खजाने में मिल जाता है!!
रफ़ी साहब की ३० वी पुण्यतिथि पर ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ ने लिखा, ‘३० वर्ष गुजर गए बिना रफ़ी के, मालुम ही नही पड़ता कि वो हमारे बीच नहीं हैं, ऐसा लगता है वो हमेशा हमारे बीच हैं’ उनकी मृत्यु के समय इसी अखबार ने लिखा था “यदि प्रेम जताने के १०० तरीके हैं, तो रफ़ी १०१ और नए तरीके जानते थे” उनकी आवाज हर प्रकार के गीत में फिट बैठती थी, फिल्म संगीत के इतिहास ने इतना वर्सटाइल गायक कभी नहीं देखा, आवाज का ऐसा असर था कि उस दौर के कुछ गायक रफ़ी साहब की नक़ल करते हुए अपने पेट पाल रहे थे और आज भी ना जाने कितने उन्हें कॉपी कर करके अपनी रोजी चला रहे हैं, आज भी “आज की शाम रफ़ी के नाम” या “unforgettable rafi” जैसे कार्यक्रम होते हैं!
रफ़ी का बचपन गरीबी से भरा था और वो जो बने उसके पीछे अथाह परिश्रम और अपने कार्य के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना थी, शास्त्रीय संगीत की अधिक शिक्षा ना होने के बाद भी उस जमाने के क्लासिकल के सबसे बड़े गायक माने जाने वाले मन्ना डे साहब ने भी माना था कि “वो जिस राग का अलाप लेने में आधा घंटे अभ्यास करते हैं, रफ़ी उसे कुछ मिनटों में ही पूरा कर लेते हैं”!
सुप्रसिद्ध गायक किशोर कुमार ने कहा था, ‘रफ़ी जितने अच्छे गायक थे उतने ही महान इंसान भी थे’! रफ़ी अपने हर कार्यक्रम से पहले भगवान् का पूजन करते थे, भगवान् कृष्ण के लिए गाये हुए उनके भजन खासे पसंद किये जाते हैं, आज भी उनकी मिठास कम नहीं होती! बेशक किशोर दा हमारे दिलों में राज करते हैं, लेकिन सच में रफ़ी हमारी आत्मा से जुड़ जाते हैं, लता मंगेशकर के साथ निभाये उनके सभी गाने अत्यंत कर्णप्रिय हैं, जिन्हें सुनकर ऐसा लगता है कि शायद इससे रूहानी रिश्ता हमारा किसी से नहीं हो सकता, रफ़ी हमारी संगीत संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं, हर वर्ग में उनकी दीवानगी देखी जा सकती है!
रफ़ी जैसे कलाकार युगों में पैदा होते हैं, उनकी सरलता और सहजता से आज के संगीतकार, गायक बहुत कुछ सीख सकते हैं, व्यक्ति को उदार होना चाहिए, अपने दिल से अपने काम को निभाना चाहिए !
आज के छद्म कलाकारों(?) ने ओछेपन से संगीत को विकृत बना दिया है ये संगीत के गुनाहगार हैं और उन ओछों को पसंद करने वाले उससे भी बड़े गुनाहगार हैं!
रफ़ी की महानता इसमें है कि आज की पीढ़ी के लोग भी उन्हें सुनते हैं और उनके गीतों को गुनगुनाते हैं!!
रफ़ी साहब को उनके ९०वे जन्मदिन पर नमन स्मरण! __/\__

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!