राजनीति

सात अजूबे इस दुनिया में आठवी अपनी जोड़ी !

सात अजूबे इस दुनिया में आठवी अपनी जोड़ी ….बस , बस,  बस…….एक हिंदी फिल्म के इस गीत की इसके आगे की पंक्ति अभी नहीं गाई जा सकती ! क्यूँ की आज दिनभर से  दुनिया जिस धरम और वीर की जोड़ी को आठवे अजूबे के रूप में देख रही है उससे तो इस गीत की यह पहली पंक्ति अनायास ही ओठों पर आ रही है ! अब उनमे हुई बातो को जानने में एडी चोटी  का जोर लगा कर भी लिप्स रीडिंग को तरस चुकमे मिडिया वालों के हाथ में जितना भी लगा और जो नहीं लगा उसमे भी मीन मेख निकालने वाले मिडिया के फर्ज को थोड़ीदेर के लिए नजर अंदाज भी कर दें तो भी दुनिया एक सर्वशक्तिमान से दुसरे शक्तिमान की मुलाक़ात को दोस्ती से कम नहीं आँक रही है ! इसमे कोई शक नहीं ! और ये सब देख कर पाकिस्तान का क्या हाल हो रहा होगा इसकी पेट में जो गुदगुदी उठ रही होगी सो अलग ! और नरेंद्र मोदी जी की भा ज पा इसके साथ ही दिल्ली चुनाव का लड्डू भी हाथों में आता देख तो फुले नहीं समां रही है !!

लेकिन काश: की ये सभी इस गीत की अगली पंक्ति ‘टूटे से ना टूटेगी ये धर्म वीर की जोड़ी’ भी गा पाते तो दुनिया के पटल पर राजनीति का नक्शा ही बदल जाता ! भाजपाई भले ही इसे सत्ता में अगले पंधरा सालों का रिजर्वेशन मानने लगे हो लेकिन दुनिया को पता है की ये एक तीन घंटे की फिल्म मात्र है ! क्यूँ की अमेरिका ने जिसके साथ भी दोस्ती की वह एक बिना इंटरवल वाली फिल्म ही बन के रह गई है ! सोवियेत रशिया के पतन के बाद अमेरिका की फिल्म में इंटरवल की संभावना ख़त्म हो गई थी ! इसीलिए वो जिसे चाहता वही आतंकवादी संगठन और आतंकवादियों का आका कहलाता फिर बाकियों को क्लीन चीट अपने आप मिल जाना तय होता , वो जिसे चाहता वही उसका दोस्त होता फिर बाकियों को उसके दुश्मन होने का डर सताना तय होता |

जिसकी एक झलक परमाणु असमझौते से आज फिर दुनिया को देखने को मिली जब इसे बड़े गर्व से भारत द्वारा समझौता करार दिया गया ! भाजपाइयों की तरह दुनिया ने भी तालियाँ बजाई लेकिन कौन किसके लिए ताली ठोक रहा होता है ये तो यही भाजपाइयों ने हमें जब वो सत्ता में नहीं होते थे और इसी तरह कोई अजूबा होता था तो कई बार हमें समझाया है ! उसे वो अपने अन्य महज चुनावी राजनैतिक बयानों की तरह भूल गए होंगे लेकिन हमें ऐसी मुलाकातों का कोई दूसरा मतलब किसी ने नहीं बताया तो हम कैसे इन मुलाकातों का कोई और मतलब निकाले ? हमारे लिए तो वही हो रहा है जो अब तक होता आया है ! बस पात्र बदले  बदले से लग रहे हैं ! वो नजर आ रहे हैं जिनकी कल्पना खुद उन पात्रों ने भी नहीं की थी की कभी हम भी वहां होंगे लेकिन इनके वहां होने को भी अब काफी समय बीत चूका है इसीलिए इस बात का भी कोई रोमांच नहीं बचा रहा !

लेकिन मिडिया है की उनकी मुलाक़ात के एक एक पल को दिखाने की होड़ में लगा हुवा है ! यहाँ तक की जहाँ कैमरा की पहुँच संभव नहीं या अलाऊ नहीं उस वक्त भी उनके हर छोटे से छोटे हलचल को ,क्या बोल रहे हैं,कैसे हिल रहे हैं आदि आदि और  उनकी लिप्स रीडिंग की भरसक कोशिश को बिना एक सेकंड का कवर गंवाए दिखा रहे हैं !! जैसे ओबामा ओबामा न हुवे भगवान हो गए | अरे ! देखो ..वो गले  मिल रहे हैं !!! अरे ! वो देखो वो चाय बना रहे हैं , चाय अपने हाथोसे से पिला रहे हैं !! अरे ये देखो,  अरे वो देखो ,अरे …….अरे  अरे ये क्या हो क्या रहा है ये ?

लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ माने जाने वाले मिडिया क्या इतना बाजारू हो गया है ? की वो किसी हीरो हिरोइन के अफेयर को दिखाने में और दो देशों के शीर्ष  नेताओं की मुलाक़ात दिखाने में कोई फर्क नहीं कर पा रहा है ?? क्या करेंगे हम ये सब देख कर  ? क्यूँ चाहिए हमें इन दो नेताओं के एक साथ बिताये हर पल की खबर ?? क्या ये नेता किसी गुप्त मिशन पर आये दो हुकुमशाह शासक हैं जो इस पूरी तरह से राजनैतिक मुलाक़ात का सार सबके साथ साझा करने के लिए बाध्य नहीं ? फिर इनकी साझा प्रेस कांफ्रेंस के अलावा कही बातों का रातदिन हरपल पीछा कर कर के दिखाने का क्या मतलब है ? क्या ये नेता प्रेस के सामने जो कुछ कहते हैं उसपर मिडिया को भरोसा नहीं होता जो वो उनके उठने बैठने , खाने धोने को भी कवर करने को मरे जाते हैं ? और हद आज तो तब हो गई जब प्रेस कांफ्रेंस में जब सीधे इन नेताओं से पत्रकारों का सामना हुवा तब भी लोग ये दोनों नेता प्राइवेट में क्या बाते करते हैं यह जानने में उत्सुक थे !

वाह रे मिडिया ! ऐसे तो अमेरिका ,ओबामा  , मोदी आदि की विदेश निति और खासकर पाकिस्तान और आतंकवादी निति को लेकर एक्सक्लूसिव नाम के साथ हर छोटे से छोटे सवाल को उठाएंगे ! हर बात की बाल की घंटो खाल उधेड़ेंगे, हजारों आशंकाएं खड़ी करेंगे ! लेकिन जब खुद पूरा का पूरा अमेरिका सामने खड़ा हो तो उनसे हमारे पी एम् के साथ हवी प्राइवेट बातें पूछेंगे ! एक में भी हिम्मत नहीं होगी की वह सीधे वह सवाल पूछे जिनके जवाब देश की जनता जानना चाहती है और जिसके लिए वो मिडिया को एक विश्वसनीय जरिया मानती हैं ! लेकिन मिडिया है की एक दुसरे से आगे और तेज होने की होड़ में कब ओबामा को अमेरिका के राष्ट्रपति से दुनिया का ही भगवान बना पर पेश कर डालती है ये उसे खुद पता नहीं  चलता ! अरे भाई ! वो भी एक लोकतांत्रिक देश का चुना हुवा नेता ही है न ? या कोई वर्षों की तपस्या से प्रसन्न होकर आपकी हर इच्छा को तथास्तु कहनेवाला कुछ ही पल के लिए प्रकट हुवा कोई वरदानी देवता ?

फिर दो देशों के नेताओं की एक आम मुलाक़ात में देश को क्या हासिल हुवा इससे ज्यादा देश ने क्या देखा इसका महत्व क्यूँ बढ़ाया जा रहा है ? वो एक दुसरे के पाँव में चप्पल भी पहना दें और हमारे मतलब की कोई बात न करें तो क्या महत्व है उसे दिखाने का ?

और तो और नेताओं को तो घेर घेर कर ,कहीं भी रोक रोक कर , वो जहाँ मिले वहीँ पकड़ कर आड़े तिरछे सवाल पूछने वाले पत्रकार उन्ही के मंत्रालयों के प्रवक्ताओं के सामने क्यूँ दब्बू बन जाते हैं ये भी समझ से परे हैं ! उनके बेरुखी से दिए हर संक्षिप्त जवाब पर सहमे हुवे से लगते हैं |  क्यूँ ? अरे नेताओं को हर बात विस्तार से बताने का समय नहीं इसीलिए ही तो प्रवक्ता रखे जाते हैं फिर उन्हें क्यूँ एक अधूरे संक्षिप्त जवाब के बदले छोड़ दिया जाता है ? पूछो उनसे जितना जानना है सब पूछो ! जब तक अपेक्षित जवाब न मिल जाए तब तक पूछो ! किसी प्रश्न के मात्र दोहराए जाने भर से आप लोगों को डपटने वाले प्रक्ताओं ,सचिवों   के सामने क्यूँ मुहं बंद कर लेते हो ? है कौन ये प्रवक्ता ? लेकिन इतनी धमक दिखाने के लसािए आपको भी अपनी बन्दर और मदारी का खेल दिखाने वाली  छवि को मिटाना होगा तभी आपको कोई सीरियसली लेगा वर्ना जवाब देने वाला आपके सवालों में सवाल और और देखने सुनने वाला उनके जवाबों में जवाब ढूँढता ही रह जाएगा |

आशा है इस गणतंत्र दिवस पर गणतंत्र के इस मजबूत खम्बे को खुद पर लगी ये दीमक दिखाई देगी और इससे मुक्त होकर  वह लोकतंत्र का एक सशक्त आधार बनने के लिए स्वस्थ होने की कोशिश करेगा ।

सचिन परदेशी

संगीत शिक्षक के रूप में कार्यरत. संगीत रचनाओं के साथ में कविताएं एवं गीत लिखता हूं. बच्चों की छुपी प्रतिभा को पहचान कर उसे बाहर लाने में माहिर हूं.बच्चों की मासूमियत से जुड़ा हूं इसीलिए ... समाज के लोगों की विचारधारा की पार्श्वभूमि को जानकार उससे हमारे आनेवाली पीढ़ी के लिए वे क्या परोसने जा रहे हैं यही जानने की कोशिश में हूं.

One thought on “सात अजूबे इस दुनिया में आठवी अपनी जोड़ी !

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख. भारत का बेशर्म मीडिया अपनी रेटिंग बढाने के चक्कर में बहुत सी मूर्खतापूर्ण हरकतें करता रहता है. यह एक पुरानी बात हो चुकी है. इसके सुधरने की कम से कम मुझे तो कोई आशा नहीं है.

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