कहानी

लम्बी कहानी : मर्डर इन गीतांजलि एक्सप्रेस (1)

||| सुबह 8:30 |||

मैंने टैक्सी ड्राईवर से पुछा- “और कितनी देर लगेंगी।” उसने कहा – “साहब बस 30 मिनट में पहुंचा देता हूँ।”  मैंने घडी देखी  8:40 हो रहे थे। मैंने कहा – “यार 9 बजे की गाडी है।” थोडा जल्दी करो यार। उसने स्पीड बढ़ा दी. मैं नासिक की सडको को देखने लगा।

मैं अपनी कंपनी के काम से आया हुआ था. कल ही काम खतम हो गया था पर मेरी तबियत कुछ ठीक न होने की वजह से मैं रात को यही रुक गया था. और आज की गीतांजलि एक्सप्रेस से टिकेट करवा लिया था और अब ट्रेन 9:25 को आनेवाली थी नासिक रोड स्टेशन पर और मैं नागपुर जा रहा था और वहां से अपना काम खत्म करके कोलकता जाना था।

अचानक एक तेज आवाज के साथ गाडी लहराई और रुक गयी। मेरे मुंह से चीख निकल गयी। गाडी से उतरा तो पाया कि पंक्चर हो गया था. ड्राईवर बोला – “सर आप ऑटो से निकल जाईये।” मैंने उसे रूपये दिए और एक ऑटो को रोका और स्टेशन के लिए चलने के लिए कहा। वो कितना भी तेज चलाये,लेट हो ही गया था, बस जैसे तैसे स्टेशन पहुंचा और उसे रुपये देकर भीतर की ओर दौड़ा !

||| सुबह 9:30 |||

मैं दौड़ते दौड़ते स्टेशन के भीतर पहुंचा और प्लेटफ़ॉर्म से निकलती ट्रेन में किसी तरह से एक बोगी को पकड़ कर भीतर घुसा। ट्रेन के अन्दर ही अन्दर चलते हुए मैं एसी कोच के अपने फर्स्ट क्लास केबिन में पहुंचा और जाकर अपनी सीट पर बैठ गया। कुछ देर तो आँखे बंद करके बैठा रहा। और भगवान का शुक्रिया अदा किया कि ट्रेन मिल गयी,वरना नागपुर में कल की मीटिंग्स नहीं हो पाती।

मेरी गहरी और तेज साँसे चल ही रही थी कि टीटी की आवाज़ सुनाई दी। “टिकट प्लीज।” मैंने आँखे खोली और टीटी को टिकट दिखाया। वो चेक करके चला गया तो मैंने चारो तरफ नज़र दौड़ायी एसी के फर्स्ट क्लास के इस डब्बे में मैं था और मेरे सामने एक आदमी था। मैंने उसे गौर से देखा. वो एक फ्रेंच-कट दाढ़ी के साथ सूट बूट पहने हुए करीब ४० साल का बंदा था. मैंने उसकी ओर हाथ बढ़ाया और मुस्कराते हुए कहा – “हेल्लो,आय ऍम कुमार। आप कहाँ जा रहे है, मैं तो नागपुर जा रहा हूँ।”

वो कुछ देर हिचकचाया फिर उसने भी अपने हाथ बढाए और मुझसे हाथ मिलाकर कहा, “आय ऍम  मायकल,मैं कोलकता जा रहा हूँ।” मैंने गौर किया कि उसके हाथ पर सफ़ेद दस्ताने थे और उसकी आँखे बड़ी सर्द थी। उसकी कोट पर एक सफ़ेद गुलाब का फूल लगा हुआ था। मुझे थोडा अजीब लगा, पर मुझे क्या, ये दुनिया एक से बढ़कर एक नमूनों से भरी हुई है।

मैंने अपना ताम-झाम सीट के नीचे रखा और अपने बेड पर पसर कर बैठ गया।

कुछ देर बाद मैंने उससे पुछा “आप क्या करते हो।” उसने कहा – “कुछ नहीं बस, गोवा में छोटा सा बिजनेस है।” मैंने कहा- “मैं एक कंपनी में मार्केटिंग करता हूँ। मैं कोलकता में रहता हूँ। यहाँ नासिक में काम के सिलसिले में आया था।”

फिर हम दोनों चुप से हो गए। कुछ देर में चाय वाला आया, अब मुझे ठण्ड भी लग रही थी। मैंने उससे दो चाय ली और मायकल को एक कप दिया। उसने कहा – “मैं चाय नहीं पीता हूँ।” मैंने दोनों कप की चाय खुद ही पी ली.

कुछ देर मैं आँखे बंद करके बैठा रहा, पर ठण्ड फिर भी लग रही थी। मैंने कोच अटेंडेट को बुलाया और उसे एसी कम करने को कहा, उसने कहा – “साब ये तो 24 डिग्री  पर है। कम ही है। आपको बुखार तो नहीं, जो आपको इतनी ठण्ड लग रही है।” मैंने उससे एक बेडरोल और मंगा लिया और कम्बल ओढ़कर बैठ गया।

मैंने मायकल को देखा वो चुपचाप बैठा था।उसने मुझसे कहा – “आप कोई स्वेटर पहन लो। नहीं है  तो मैं अपना कोट देता हूँ।” मैंने  कहा – “थैंक्स मायकल। देखता हूँ थोड़ी देर में ठण्ड शायद चली जाए. आपको ठण्ड नहीं लग रही है ?”

उसने कहा – “नहीं। मुझे ठण्ड नहीं लगती है। जहाँ मैं रहता हूँ वहां काफी ठण्ड रहती है। इसलिए  मैंने अपने साथ वहां की कुछ ठण्ड को लेकर चलता हूँ।……..हा….हा….हा  !”

मुझे ये बात बड़ी अजीब सी लगी। पर मैं भी हंसने लगा !

फिर थोड़ी देर रुक कर उसने कहा – “एक काम करो, मेरे पास थोड़ी सी व्हिस्की है अगर आप एक घूँट ले लो तो शायद ठण्ड न लगे !”

मैंने कहा – “हां यार ये ठीक रहेंगा।” उसने ये सुनकर अपने सीट के नीचे से एक पुराने से बैग से एक ब्लेंडर्स प्राइड की बोतल  निकाली। मैंने देखकर कहा – “अरे ये तो मेरा ब्रांड है, पर गिलास का क्या।” मायकल ने कहा – “अरे ऐसे ही लगा लो कोई वान्दा नहीं है। पर तुम्हे गिलास चाहिए तो मेरे पास उसका भी इंतजाम है।” उसने बैग से दो अच्छे से वाइन ग्लासेज निकाला। ये देखकर मैंने कहा – “अरे यार तुम तो बड़े छुपे रुस्तम हो। सारा इंतजाम करके निकलते हो.” हम दोनों ने उन्ही ग्लासेज में व्हिस्की के साथ थोडा पानी मिलाकर लम्बे घूँट लिए। मेरा कलेजा जल गया, पर कुछ मिनट में राहत लगने लगी।

मायकल ने फिर बैग से एक छोटा सा चांदी का डब्बा निकाला, उसमे काजू थे, उसने मुझे खाने को कहा। मुझे तो मज़ा ही आ गया। मुझे अब थोडा सा सुरूर आ रहा था।

ड्रिंक्स हो गए, अब मैं बेड पर लेट गया था। मायकल ने कहा बत्तियां बंद कर दो। मुझे रोशनी ज्यादा पसंद नहीं है। मैंने केबिन की बत्तियां बंद कर दी।

मैं गुनगुनाने लगा। “ मायकल की दारु झटका देती है। मायकल की दारु फटका देती है।” ये सुनकर वो हंसने लगा. उसकी हंसी बड़ी अजीब सी थी। मैंने आँखे बंद कर ली। मुझे हलकी सी नींद आ गयी …

(जारी…)

2 thoughts on “लम्बी कहानी : मर्डर इन गीतांजलि एक्सप्रेस (1)

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    दिलचस्प कहानी.

  • विजय कुमार सिंघल

    कहानी रोचक है !

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