कविता

देह आभास

 

बिना देह आभास के
कैसे करूँ मैं तुम्हारी आराधना
निराकार की कठिन होती है साधना
साकार मिलने का इसलिए
प्रिये करो तुम वादा

तुम हो अमृतमयी धारा
तुम बिन महासागर होकर भी
हूँ मैं खारा

हज़ारों गोपियों में
हो तुम
भावनायुक्त एक बाला
तुम्हें ही पहनाना चाहता हूँ मैं
इसलिए प्रेम सुमनों से गूँथी हुई माला

तुम ही हो मेरी राधा
इसलिए कृष्ण सा क्यों न रिझू
मैं
तुम पर ही सबसे ज्यादा

सब कुछ इशारे से ही कह देती हो
तुम्हारे मौन से मुझे हुआ है फायदा
कहते हैं गुपचुप रहने का ही
प्रेम में हैं कायदा

वियोग में होता है
आवारगी का अहसास
मिलन में मन रहता है
प्रणय में तल्लीन
राग में मिला होता ही है
कुछ मीठा और कुछ नमकीन
तन नही है
दो रूहों के संयोग में बाधा
शरीर के पास है
रूह तक पहुँचाने का दरवाज़ा

इसलिए
प्यार के पथ में बिछा होता है
कहीं पर फूल तो कहीं पर काँटा
नहीं होता है वह
एकदम सीधा और सादा

सदियों का हो या
जन्मों का अंतर
मिल ही जाते हैं प्रेमी
हो यदि उनमे
अनुराग प्रगाढ़ और गाढ़ा
तुम ही हो मेरी राधा
इसलिए कृष्ण सा क्यों न रिझू
मैं
तुम पर ही सबसे ज्यादा

किशोर कुमार खोरेन्द्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

2 thoughts on “देह आभास

  • बहुत खूब .

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

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