कविता

कविता—-”कुछ ख्वाब अधूरे से हैं”

बिखरा हुआ ,
इधर उधर भटकता एक ख्वाब
ढूँढता है खुद की पहचान …..
अच्छा लगता है ,
खुद को ढूँढना ख्वाबों में…
पर सोचती हूँ कभी ,
जब तक ये ख्वाब मौजूद है
जेहन में मेरे ,
तभी तक ये दुनियाँ भी
खूबसूरत है……..
हाँ,,,सच ही तो है
तमन्नाओं का क्या ……?
उन्हें तो बिखरना ही है …
फिर तो ,
तमाशबीन होगी ये दुनियां
क्योंकि ….
यही तो हकीकत है …
लोगों का क्या है ,
वो तो हर हाल में कुछ न कुछ
कहते ही हैं……

संगीता सिंह ”भावना’

संगीता सिंह 'भावना'

संगीता सिंह 'भावना' सह-संपादक 'करुणावती साहित्य धरा' पत्रिका अन्य समाचार पत्र- पत्रिकाओं में कविता,लेख कहानी आदि प्रकाशित

2 thoughts on “कविता—-”कुछ ख्वाब अधूरे से हैं”

  • सुन्दर कविता .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत ख़ूब !

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