कविता

कसमे वादे प्रण संकल्प !

किनारों पे चलते क़दमों ने लहरों से
वादा करने की ठानी है
कदम चूमकर लहरों ने कहा
ये राहगीरों की आदत पुरानी है

पेड़ों के नीचे कुल्हाड़ी ने
अब कुछ सुस्ताने की ठानी है
थपथपाकर कटी डाली ने कहा
कातिल की ये अदा पुरानी है

अपने खेतों में किसानों ने
अपने जिस्म बोने की ठानी है
इसकी भी लागत के अनुपात में
सरकार ने फसल की कीमत मांगी है

दुआओं ने अब खुदा से
रिश्ता तोड़ने की ठानी है
पैसे के बदले ही पैसा मिलेगा
तेरे दर की भी यही कहानी है

हर पड़ोसी ने बगल की
खिड़की बंद करने की ठानी है
हर लिबास में इंसान ही है
ये बात मजहब ने नहीं मानी है

हवाओं को भी गुब्बारों ने
कैद में रखने की ठानी है
हवा में उड़ने वालों ने अभी
सुई की औकात नहीं जानी है

सचिन परदेशी ‘सचसाज’

सचिन परदेशी

संगीत शिक्षक के रूप में कार्यरत. संगीत रचनाओं के साथ में कविताएं एवं गीत लिखता हूं. बच्चों की छुपी प्रतिभा को पहचान कर उसे बाहर लाने में माहिर हूं.बच्चों की मासूमियत से जुड़ा हूं इसीलिए ... समाज के लोगों की विचारधारा की पार्श्वभूमि को जानकार उससे हमारे आनेवाली पीढ़ी के लिए वे क्या परोसने जा रहे हैं यही जानने की कोशिश में हूं.

One thought on “कसमे वादे प्रण संकल्प !

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !
    बढ़ बढ़कर बोलने वालों ने, कविता लिखने की ठानी है !
    पर हर तुकबंदी कविता नहीं होती, यह बात नहीं जानी है !!

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