राजनीति

मोदी सरकार बनाम एक साल

‘जैसे उड़ि जहाज को पंछी पुनि जहाज पर आवै’, हमारे प्रधानमंत्री जी भी इस बार बार के विदेश प्रयाण (12 माह में 18) से थोड़ा थकान अवश्य अनुभव कर रहे होंगे । पर यहाँ भी चैन कहाँ । एक तरफ मौसम बेरहम और दूसरी तरफ, साल भर का लेखा-जोखा लिये विपक्ष बेशरम। इधर पार्टी ‘साल गिरह मुबारक’ पर, किताबों, रैलियों और आयोजनों के माध्यम से फिर एक बार करोड़ों फूँकने को तैयार है और उधर, अच्छे दिनों की आमद को लेकर मूर्ख जनता का मोह भंग होता नज़र आ रहा है। इसे मोदी जी के व्यक्तित्व का करिश्मा कहा जाय या उनके ऊँचे ऊँचे वादों का प्रताप कि देश के तमाम विश्लेषक, अर्थशास्त्री, टीवी चैनल, सामरिक विशेषज्ञ, शिक्षाविद, प्रबंधन गुरु, धर्माधिकारी, बैंक, न्यायविद, समाज शास्त्री, औद्योगिक घराने, पक्ष-विपक्ष, यहाँ तक की साहित्य और फिल्मी दुनिया से जुड़े लोग भी, अर्थात हर लल्लू-पंजू  उनके साल भर के कार्य कलाप का रिपोर्ट कार्ड बनाता घूम रहा है।’वो 365 मोदी दिन’ की रिलीज़ इसलिए अहम हो गयी है क्योंकि देश असली कहानी और फिल्मी कथानक की तुलना करने को आतुर है।

परन्तु, क्या यह रिपोर्ट कार्ड बनाते बनाते हम ऊब नहीं गये हैं? सरकार के 50 दिन, सरकार के 100 दिन, सरकार के छः महीने, सरकार का एक साल, सरकार की सिल्वर जुबली, सरकार की गोल्डन जुबली ! भाई, जब तक वो सत्ता में है, सारे दिन भगवान, मतलब, सरकार के ही हैं, तो उसे अलग अलग इकाइयों में विभाजित करने की आवश्यकता क्या है। सत्ता के अन्त में इकट्ठा भी तो देखा जा सकता है। फिर, एक साल बाद कोई चुनाव तो होने वाला नहीं कि, किये गये कार्य की विवेचना जरूरी हो। और,मोदी जी भी कोई स्कूली बच्चे नहीं हैं जिसे अगली कक्षा में प्रवेश के लिये अच्छा रिपोर्ट कार्ड दरकार होता है। मगर फिर भी लोग बना रहे हैं।

इस जग दिखायी की आवश्यकता ही क्या है?  कार्य को धरातल पर स्वयमेव दिखना चाहिये, या न होते हुए भी दिखाया जाना चाहिये? अजब विडंबना है। ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’, ‘मेक इन इण्डिया’ और ‘स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत’ जैसे मनभावन नारों में जनता आ गयी और मोदी सरकार को उपयुक्त बहुमत भी दे दिया ताकि मोदी जी यह न कहें कि सहयोगी दल सहयोग नहीं करते । नारों के समकक्ष कुछ निर्णय भी लिये गये, परन्तु, मंहगाई डाइन हाथ नहीं आ रही है, तमाम बड़ी बड़ी कंपनियाँ, जो मोदी सरकार के गुण गाते नहीं थक रहीं थीं, वे ऋणात्मक वृद्धि दर्शाने लगीं, डालर कब 64 रुपये का हो गया किसी को खबर ही नहीं । यमन में फँसे भारतीयों को निकलना और नेपाल त्रासदी पर तुरंत कार्रवाई अत्यंत सराहनीय काम रहा, पर काश्मीर का मसला और उलझा ही है। आइएसआइएस के हाथों पड़े 23 भारतीय नागरिकों को नहीं छुड़ा पाए। वहाँ से लौटे एक प्रत्यक्ष दर्शी का कहना है कि वे सब मार दिये गये हैं पर हमारी विदेश मंत्री कहती हैं कि वे सुरक्षित हैं। अब आईएसआईएस ऐसे संगठन के हाथों कीई सुरक्षित कैसे रह सकता है, ये माननीय विदेश मंत्री जी ही बता सकती हैं।

विदेश नीति को प्रभावी बनाने के प्रयास पहले दिन से ही नज़र आ गये जब नवाज़ शरीफ को न्योता भेजा । ये और बात है कि उस रिश्ते में वांछित गर्माहट न आ सकी, हालाँकि उसे काफी शाल-वाल ओढ़ाने की कोशिश  की गयी थी। मेक इन इण्डिया को सफल बनाने के चक्कर में मोदी जी दुनिया भर में भाग दौड़ लगा रहे हैं। साथ साथ वे चीन-पाकिस्तान की जुगलबंदी को निष्प्रभावी भी बनाने के प्रयास करते नज़र आते हैं। पर ऐसा लगता है कि उनके विकास रथ के घोड़े अलग अलग दिशाओं में खीँच रहे हैं। प्रवासी भारतीयों को दिये गये लुभावने वादे देश की हकीकत से मेल नहीं खाते । अभी तक सामान्य बिक्री कर की अवधारणा अधर में ही है और जमीन अधिग्रहण कानून अभी भी ग्रहण से बाहर नहीं आ सका है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ कैसे जब बेटी की अस्मत की रक्षा का कोई कारगर उपाय ही नहीं है। स्वच्छ भारत की कल्पना, बिना जनता की मानसिकता बदले, कल्पना ही साबित हो रही है। ऐसा न हो कि पाँच साल बाद लोग कहते मिलें कि भाजपा के पास सिर्फ नारे हैं, और कुछ नहीं । ‘मेरा भारत महान’, ‘शाइनिंग इण्डिया’ आदि नारों से हम पहले भी दो-चार हो चुके हैं। अपनों को रेवड़ी तो एक अंधा भी बाँट लेता है। तमाम नागरिक पुरस्कारों के साथ मोदी सरकार ने भी ऐसा ही कुछ किया तो इसमें हैरत कैसी।

अलबत्ता, विदेश नीति में मिलती कामयाबी का प्रभाव प्रधानमंत्री पर असर ला रहा है। एयर फोर्स वन की तर्ज पर विकसित, एयर इण्डिया के जम्बो जेट के दरवाजे से बाहर निकलते हुए जिस अदा से वो हाथ हिला कर अगवानी के लिये बिछी लाल कालीन पर चलते हुए आते हैं, वो रैम्प पर चलती एश्वर्या राय को मी मात करने वाला होता है । खादी ग्रामोद्योग के पोस्टर ब्वाॅय तो वो पहले ही बन चुके हैं। वे जानते हैं कि सब उन्हीं को देखने सुनने आते हैं। शायद इसी वजह से वे भूल गये हैं कि वे देश  का प्रतिनिधित्व करते हैं, न कि अपने व्यक्तित्व का। दलगत खीँचा तानी को विदेशी जमीन तक खीँच ले जाना भी मोदी एफेक्ट का हिस्सा लगता है। उनके भद्र व्यवहार की परिणति तो उनके स्वनाम धन्य सूट में हम पहले ही देख चुके हैं । कुछ एक का ये कहना,  कि इस सूट की कीमत दिल्ली के चुनाव से चुकाई गयी है, ठीक भी हो सकता है।

हाँ, मोदी जी की अगुवाई में इतना जरूर हुआ है कि तमाम साधू, साध्वी और महंत लोग मुखर हो गये और जातिगत द्वेष को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी । खैर, वे सब तो बंद दिमाग के लोग हैं, अतः उनसे ऐसे ही व्यवहार की अपेक्षा थी पर, हमारे प्रधानमंत्री को क्या हो गया था जब उन्होंने चीन में भारतीय समाज के आगे स्वामी आदित्यनाथ की तरह वक्तव्य दिया ! भारत में पैदा होना एक श्राप से कम नहीं है ! ये हमारे माननीय प्रधानमंत्री की, या फिर उनके काॅरपोरेट दोस्तों की सोच हो सकती है, हम कोटि कोटि भारत वासियों की नहीं । पिछले कई जन्मों के संचित पुण्यों का लाभ होता है जो इस शष्य श्यामला पावन धरती पर पैदा होने का सौभाग्य मिलता है। प्रधानमंत्री जी से मैं यही कहना चाहूँगा कि, हम गंदे हैं, गरीब हैं, आलसी हैं, बेईमान हैं, जो भी हैं, जैसे भी हैं, दुनिया के तमाम विकसित देशों के  लोगों से लाख दर्जे अच्छे हैं। यह बात एक सच्चा भारतीय तो समझ सकता है, आँखों पर परदेशी चश्मा लगाने वाले नहीं । मोदी जी की मनःस्थिति को हम भारतवासी भलीभाँति समझ सकते हैं, परन्तु विदेशी जमीन पर अपने ही देश की खिल्ली उड़ाना असह्य है। हमारी तो नियति ही इंतजार करने की है, सो वो हम कर रहे हैं, इसलिए नहीं कि हम भीरु हैं।हम हद दर्जे तक सहनशील हैं। हम अनायास के उपद्रव से बचते हैं। हम अत्यधिक और बेवजह की कामना नहीं रखते । हमें ईश्वरीय न्याय पर पूरा भरोसा है। इसका मतलब यह भी नहीं है कि हम अकर्मण्य हैं। अपनी पर आ जाएँ तो अंग्रेजों को भी उखाड़ कर फेंक सकते हैं।

मोदी जी, हमारी आवश्यकता स्मार्ट सिटी नहीं, जनता आवास है। बुलेट ट्रेन नहीं गरीब रथ है। हर हाथ को काम है, हर पेट को रोटी और सबके लिये सुलभ प्रशासन है। अभी भी, आप के पास चार वर्ष हैं और हमें आप पर विश्वास है। आइये, मिल कर कुछ सार्थक करें !

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।

2 thoughts on “मोदी सरकार बनाम एक साल

  • मनोज पाण्डेय 'होश'

    असहमति आपका अधिकार है। पर हमें अपना मत व्यक्त करने की स्वतंत्रता तो आप देंगे न । विवाद उतपन्न होने से ही यथार्थ तक पहुँचा जा सकता है। वैसे भी, धर्म और राजनीति विवाद के लिये अयोग्य विषय हैं। धन्यवाद ।

  • विजय कुमार सिंघल

    मैं आपके लेख की कई बातों से असहमत हूँ. किसी जनता का मोह भंग नहीं हुआ है. जिन्होंने मोदी जी को वोट दिया था वे आज भी मोदी जी पर ही विश्वास करते हैं. मोदी जी ने देश में बुनियादी विकास के लिए बहुत ठोस काम किये हैं. विकास डर 7.7 से आगे बढ़कर 8 को छूने जा रही है. यह कोई मामूली उपलब्धि नहीं है.
    परन्तु जो एक साल में ही देश में स्वर्ग उतार लाने की आशा करते थे, उनको तो निराश होना ही पड़ेगा. उनका कोई इलाज नहीं है.

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