लघुकथा

पगली

भेड़–बकरी से भरे ऑटो में नन्हा मुदित पसीने-पसीने हो रहा था | ऑटो चालक एक और नन्ही कली को ठूस दिया भूसे की तरह| ऑटो में अब तिल रखने की भी जगह न बची थी । चहकती हुई कली दोपहर की छुट्टी बाद मुरझाई सी घर पहुँची |
माँ ने खाना पीना खिला बैठा लिया पढ़ाने | थकी हारी बच्ची खा पी रात में जल्दी ही सो गयी |

एक दिन ऐसा आया ऑटो में ही कली मुरझा गयी | एक तो भीषण गर्मी दूजे भेड़ बकरी से छोटे से ऑटो में ठूंसे बच्चें।नन्हा मुदित भी बेहोश सा हो गया था |
बड़े बड़े डाक्टरों के पास रोते बिलखते माता पिता पहुँचते पर सब जगह से निराशा हाथ लगी |
अब माँ स्कूल के बाहर खड़े हो उन ऑटो चालको को सख्त हिदायत देते देखी जाती थी , जो बच्चों को ठूस ठूस भरे रहते थे| माता पिता को भी पकड़-पकड़ समझाती थी । समझने वाले समझ जाते थे| पर अधिकतर लोग पगली कह निकल जाते थे ।
ट्रैफिक एसपी ने जब देखा उसे ऑटो को रोकते , तो पहुँच गया डांट लगाने | परन्तु उसका दर्द सुन खुद लग गयें खुद ही इस नेक काम में |
आज ज्यादातर स्कूलों में अधिक बच्चे बैठाने पर ऑटो चालको को फाइन देना होता हैं | कानून के डर ने माँ मंजू के काम को आसान कर दिया था | सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

One thought on “पगली

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी लघुकथा !

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