ग़ज़ल
अब बात चाहे जो भी हो, इतना ज़रूर है,
होना था जिसको पास वो आँखों से दूर है।
माना कि, बेवफाई बेसबब नहीं मगर,
ये दिल का आईना तो मेरा, चूर- चूर है।
वो इश्क का नसीब था, बदनामियाँ मिलीं,
तेरा कुसूर है, ना ये, मेरा कुसूर है।
है जाहिदों को मयकशी पे उज्र किस लिये,
वो ही तो दर्दमंदे – दिले – नासुबूर है.
भीगी पलकें सुखा लिया हमने,
दिल को पत्थर बना लिया हमने।
सर्द आहों से सिल लिये लब को,
रूप सादा बना लिया हमने।
‘होश’, देखो, कि किस क़रीने से;
तेरी फित्रत छुपा लिया हमने।
अच्छी ग़ज़ल !