कविता

मंगल पाँडे

अग्रदूत बनकर स्वतंत्रता का ,
उसने शंखनाद किया !
लेकर साथ जवान,किसान,
शुरू उसने संर्घष किया!
देश को,आजाद कराने की ,
कसम उसने थी मन में खाई !
देश की खातिर मर मिटने की,
आग सीने में सुलगाई !
गाय ,सूअर की चर्बी से बनी,
कारतूस न उसने हाथ लगाई!
टकरा गया वो फिरंगीयों से
विद्रोह की चिंगारी उसने सुलगाई !
मंगल-मंगल गाकर क्या तुम
उसके जेसे बन जाओगे !
क्या फिर से आजादी की
शमाँ तुम जला पाओगे !
आँखें खोलो दुनियाँ वालों,
अपने लहू में भरो रवानी !
देश की शान की,खातिर मर मिटने की,
आग सीने मै जला पाओगे !
देश की खातिर,जो शहीद हो गये
बलिदान व्यर्थ न जाने दोगे !
सबक लो उन वीरों से तुम,
हँसकर सर्वस्व न्योछावर कर गये!
मंगल पाँडे से डरकर अंग्रेजो ने ,
चोंतीस हजार चार सौ पैंतिस कानून
भारत की जनता पर लगाये !
हिला दिया था फिरंगियों को उसने ,
देश की आजादी का सपना था,उसके मन में!
जागो मेरे देश के लालों,
फिर खून में वो उबाल भरो !
अपने हित से उपर उठकर ,
माँ भारती का ख्याल करो !
अपनी वर्दी की शान की खातिर
हूसन को मौत के घाट उतारा!
मौत नतमष्तक थी उसके आगे ,
हँसकर उसको भी गले लगाया !
“आशा” नमन है, शहादत को उनकी,
खुद मिटकर देश का मान बढ़ाया !
...राधा श्रोत्रिय”आशा”

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"

4 thoughts on “मंगल पाँडे

  • विजय कुमार सिंघल

    मंगल पांडे की बलिदान भावना प्रशंसनीय है। लेकिन उनका एक नकारात्मक बिंदु भी है। 1857 की क्रांति के लिए ३१ मई का दिन निर्धारित किया गया था। परंतु मंगल पांडे ने अपने जोश में अनुशासन को ताक पर रखकर १० मई को ही इसका प्रारम्भ कर दिया। इस कारण से भ्रम फैल गया और क्रांति पूरे पैमाने पर नहीं हुई। इस असफलता के कारण यह क्रांति केवल विद्रोह बनकर रह गयी।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अछे विचार आप के जिन्होंने मंगल पांडे जैसे महान पुरषों की याद दिला दी .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुंदर रचना।

  • महातम मिश्र

    बहुत ही प्रेरक रचना सम्माननीया राधा श्रोत्रिय जी

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